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________________ शब्दार्थ) सूत्र 48 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी भावार्थ सं० शक्र दे० देवेन्द्र च० चमर अ० असुर राजा कू० कूणिक को सा० साहाय द० दी गो० गौतम स० शक्र दे० देवेन्द्र पु० पूर्वसंगति से अ० अमुर अ० असुरराजा प० पर्याय संगति से ए० ऐसे गो० गौतम ) ॥ ११ ॥ ब० बहुत म० मनुष्य मं० भगवन् अ० अन्योन्य ए० ऐसा आ० कहते हैं जा० यावत् प० भंते ! सक्के देविंदे देवराया चमरे अरिंदे असुरराया कूणियस्स रण्णो साहेज्जं दलयित्था ? गोयमा ! सक्के देविंदे देवराया पुव्वसंगइए, चमरे असुरिंदे असुरराया परियायसंगइए ॥ एवं खलु गोयमा ! सक्के देविंदे देवराया चमरे असुरिंदे असुरराया कूणियस्स रणो साहेज दलयित्था ॥ ११ ॥ बहुजणेर्ण भंते ! अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेई, एवं खलु बहवे मणुस्सा अण्णतरेसु उच्चावएम संगामेसु अभिमु उत्पन्न हुए || १० || अहो भगवन् ! शक्र देवेन्द्र व चमर असुरेन्द्रने किस कारन से कूणिक राजा को ( साहायता दी ? अहो गौतम ! शक्रेन्द्र का जीव पूर्व जन्म में कार्तिक शेठ था. उस समय कूणिक राजा का जीव उनका मित्र था. चमरेन्द्रका जीव पूर्व जन्म में पूरण नामक तापस था. तापस था. दोनों तापसों को परस्पर मित्रता थी. पूर्व जन्म की प्रीति के दोनों इन्द्रोंने साहायता दी || ११ || अहो भगवन् ! बहुत मनुष्य हैं कि बहुत मनुष्य किसी ऊच्च नीच संग्राम में सन्मुख होते हणावे तो वे वहां काल के और कूणिक का जीव भी संबंध से कूणिक राजा को परस्पर ऐसा कहते हैं * प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी जालाप्रसादजी * यावत् प्ररूपते अवसर में काल ९५८
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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