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शब्दार्थ तरफ प्र० फीरता से वह ते० इसलिये ॥ ९ ॥ २० रथमुशल सं० संग्राम में व वर्तते क० कितने मनुष्य स० लक्ष व० हणांये गो० गौतम छ० छन्नु ज० मनुष्य स० लक्ष व० हणाए ते० वे भं० भगवन् (नि० निःशील जा० यावत् उ० उत्पन्न हुने त ० तहां द० दश सहस्र ए० एक म० मच्छी की कु० कुक्षि { में उ० उत्पन्न हुवे ए० एक दे० देवलोक में उ० उत्पन्न हुत्रा ए० एक सु० सुकुल में उ० उत्पन्न { हुवा अ० अवशेष उ० प्रायः न० नरक ति० तिर्यच जो० योनि में उ० उत्पन्न हुये ॥ १९ ॥ क० क्यों ते जाव रहमुसले संगामे ॥ ९ ॥ रहमुसलेणं संगामे वट्टमाणा कइ जण सयसाहसीओ वहियाओ ? गोयमा ! छण्णउई जणसय साहस्सीओ वहियाओ ॥ ते भंते ! मया निस्सीला जाव उबवण्णा ? गोयमा ! तत्थणं दससाहरसीओ गए मच्छिया कुचिंसि उववण्णाओ, एगे देवलोगेसु उववण्णे, एगे सुकुले पचाया अवसेसा उसण्णा नरगतिरिक्खजोणिएस उबवण्णा ॥ १० ॥ म्ह { संग्राम कहा गया है ॥ ९ ॥ अहो भगवन् ! रथ मुशल संग्राम में कितने लक्ष मनुष्य हणाये ? अहो गौतम ! रथ मुशल संग्राम में छन्नु लक्ष मनुष्य हणाये. अहो भगवन् ! उस संग्राम में हणाये हुवे शीलाचार रहित यावत् कहां उत्पन्न हुए ? अहो गौतम उन में से दश सहस्र मनुष्य एक मच्छी की { कुक्षि में उत्पन्न हुए, एक देवलोक में, एक मनुष्य गति उत्तम कुल में और शेष प्रायः नरक व तिर्यंच में
!
में
सत्र
भावार्थ
०३ पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
40 सातवा शतक का नववा उद्देशा
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