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शब्दार्थ
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
ज. जितने को त तैसे जा० यावत् दि. दिशाओं में प० भगाये ॥ ८॥ से अथ के० कैसे भ० भगवन् । ए. ऐसा कुछ कहा जाता है र० रथमुशल संग्राम गो. गौतम र० रथमुशल संग्राम में व० रहा हुवा ए०१३ एकरथ अ० अश्व रहित अ० सारथि रहित अ०स्वारी रहित स० मुशल साहित म० बडा ज० जनक्षय ज. जनवध ज० जन प० संहार ज० मनुष्य सं० संवर्तक जैसे रु० रुधिर क. कर्दम क० करते स. सब __ विणं पभू कूणिए राया जइत्तए तहेव जाव दिसोदिसिं पडिसेहित्था ॥ ८ ॥ से
केण?णं भंते ! एवं बुच्चइ रहमुसले संगामे ? गोयमा ! रहमुसलेणं संगामे वमाणे एगे रहे अणासए असारहिए अणारोहए समुसले महया जणक्खयं जणवहं
जणप्पमई जणसंवद्दकप्पं रुहिरकद्दमं करेमाणे सव्वओ समंता परिधावित्था ॥ से लोहे का भाजन की विकुर्वणा करके उपस्थित रहे. इस युद्ध में शक्रेन्द्र असुरेन्द्र व मनुष्येन्द्र ऐसे तीन । इन्द्रों एक ही हस्ती पर आरूढ होकर युद्ध करने को आये इस से कूणिक राजा मात्र एक हस्ती से ही उन का पराजय कर सकते हैं ॥ ८ ॥ अहो भगवन् ! रथ मुशल संग्राम किस कारन से कहा गया है ? अहो गौतम ! रथ मूशल संग्राम में एक रथ होता है जिस को अश्व नहीं होते हैं, सारथी भी नहीं होता है और उस में कोई बैठनेवाला भी नहीं होता है, मात्र चारों तरफ मूशल. होता है. वैसा रथ बहुत मनुष्यों का क्षय वध मर्दन, व रुधिर का कीचड करता हुवा चागेतरफ फीरता है, इस कारन से रथ मुशल
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प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी घालाप्रसादजी*
भावार्थ