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शब्दार्थ
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| सूत्र |
पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 888
न० तैसे जा. यावत् चि० रहे म० पीछे से वह च० चमर अ० असुरेन्द्र अ० असुरराजा ए० एक म० बडा आ० लोहेका कि• कठिन १० प्रतिरूपक वि० विकुर्वकर चि० रहे ए. ऐसे त० तीन इं० इन्द्र सं० संग्नाम करते हैं दे देवेन्द्र म० मनुष्येन्द्र अ० असुरेन्द्र ए० एक ह० हस्ति से प० समर्थ कू० कूणिकराजा
के जयित्था के पराजयित्था ? गोयमा ! वज्जीविदेहपुत्ते चमरेय असुरिंदे असुरकु. मारराया जयित्था नवमलई नवलेच्छई परांजइत्था ॥तएणं से कूणिए राया रहमुसलं संगाम उवट्टियं सेसं जहा महासिलाकंटए, णवरं भूयाणंदे हत्थिराया जाव रहमुसलं संगामं उयाए पुरओयसे सक्के देविंदे देवराया एवं तहेव जाव चिटुंति, मग्गओयसे
चमरे असुरिंदे असुरराया एगं महं आयसं किढिण पडिरूवगं विउव्वित्ताणं चिट्ठइ, __ एवं खलु तओ इंदा संगाम संगामंति, तंजहा-देविंदे मणुयदे असुरिंदे । एग हत्थिणा जाना है. अहो भगवन् ! रथमुशलसंग्राम में कौन जीते व कौन पराजित हुवे ? अहो गौतम ! रथ भी मुशल संग्राम में कूणिकराजा ब चमरेन्द्रका जय हुवा और नवमल्लकी नवलेच्छकी ऐसे अठारह राजाओं का पराजय हुवा. इस का सव अधिकार महाशिलाकंटकसंग्राम जैसे जानना. इस में भूतानेन्द्र नामक हस्ती राज पर आरूढ होकर कूणिक राजा संग्राम में आये. पहिले ही शक्र देवेन्द्र अभेद्य कवच, की विकुर्वणा करके खडे रहे. और चमर नामक असुरेन्द्र तापसको जैसा वांस का भाजन होता है वैसा का
सातवा शतक का नववा उद्देशा
भावाथे