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शब्द
सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
कं० कवच व० वज्रमय वि० विकुर्वकर चि० रहे ए० ऐसे दो दोइन्द्र सं० संग्राम करते हैं दे० देवेन्द्र म० { मनुजेन्द्र ए० एक ६० हस्ती से प० समर्थ कू० कूणिक राजा प० पराजय करने को त० तत्र से० वह कू० कूणिक रा ० राजा म० महाशिला कंटक सं० संग्राम करते नं० नवल्लकी न० नवलेच्छकी का० काशी को० कोशल के अ० अठारह ग० प्रधान रा० राजा को ह० हने म० बडे प० प्रधान वी० वीर घा० घात कीये १० गीराइ चि० चिन्ह प० पतका कि० कष्ट से पा० प्राण ग० गए दि० दिशाओं में
दो इंदा संगामं संगामंति तंजहा देविंदेय मणुइदेय, एगहत्थिणाविणं पभू कूणिए राया पराजयत् ॥ एवं से कूणिए राया महासिलाकंटकं संगामं संगामेमाणे नवमलई नवलेच्छई कासी कोसलगा अट्ठारसवि गणरायाणो हयमहियपवरवीरघाइयावि पडियचिधयपडागे किच्छप्पाणगए, दिसो दिसिं पडिसेहित्था, ॥ ५ ॥ सेकेट्टे
सो कूणिक राजा ऐसे दो इन्द्रों संग्राम करने लगे. कूणिक राजा मात्र एक हस्ती से ही अन्य को पराजित करने को समर्थ है. अब कूणिक राजाने उस महाशिला कंटक संग्राम में युद्ध करते हुवे काशी व कोशल देश के नत्र मल्लकी व नव लेच्छ की राजा को हणे, उन के शूरवीर सुभटों की घात की, और चिन्ह, ध्वजाव चक्रादि युक्त पताका का नाश किया. और वे दुःखी होते हुये चारों तरफ भगने लगे ॥ ५ ॥ अहो भग
* प्रकाशक - राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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