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शब्दाथे
40 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
अप्रवेशकर हास्नानकिया ककोगले किये कासगंधिका विलेपन किया पा०तीलमसक किये स०सर्व अ० अलंकार से वि० विभूषित सं० संनद्धब० बद्ध व० वर्भित क. कवच उ. अच्छाकिया स० धनुदंड १० बांधा गे० ग्रीवा का वि० विमल व प्रधान ब. बद्ध चि० चिन्टका पाटा ग० लीया आ० आयुध पहरण स कोरंटक के म० माला सहित छ० छत्र ध० धारण कर च. चार चा० चामर बा० बाल से वी० वीजाता अंग मं० मंगल ज. जय स० शब्द क. लोकों से कराया ए. ऐसे ज. जैसे उ० उववाई में जा
विसइ अणुपविसइत्ता, पहाया कयबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते सव्वा लंकार विभूसिए संनद्धबद्धवम्मिय कवये उप्पीलियसरासण पट्टीए पिणिड गेविज्ज विमलवरबद्धचिंधपट्टे, गहियाउहप्पहरणे सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिजमाणेणं
चउचामर बालवीइयंगे मंगल जय २ सद्दकया लोए एवं जहा उववाइए जाव किया, पानी के कोगले किये, सुगंधि द्रब्यका विलेपन किया, तिल मसादिक किये, सर्वालंकार से विभूपित बने, कवच को शरीर पर धारन किया, बाणयुक्त धनुष्य करके, अपने शरीर को बरावर किया, ग्रीवाके आभरण का बंध किया, विमल व प्रधान राज्यचिन्हपट्ट धारन किया, व अन्य को हणनेवाले आयुधों हस्त में धारन किये. फीर कारंटक वृक्ष के कुसुमों की मालावाला छत्र शीरपर धारण करते हुवे चार चामरों से विजाते हुवे और देखते 'जय जय' शब्द होते हुए यावत् : उववाइ सूत्रानुसार सब
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ