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शब्दार्थ
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मुनि श्री अमोलक ऋषीजी - अनुवादक-बालब्रह्मचारी
कौटुम्बिक को स. बोलाकर ए. ऐसा व० बोले खि० शीघ्र दे देवानुप्रिय उ० उदायी ह० हस्ति को प०१ सजकरों इ० अश्व ग० गज र० रथ जो जोध क- युक्त चा० चतुरंगिनी में सेना स० सजकरो मा० यावत् म० मेरी आ• आज्ञा खि० शीघ्र ५० पछिी दो त० तब से० के को० कौटुम्बिक पुरुष । को कूणिक र० राजासे एक ऐसा वु० बोला हुवा ह० हृष्ट तुष्ट जा. यावत् अं० अंजलि जोडकर एक से मा० स्वामिन त तैसे ही आं० आज्ञा से वि० विन्य से व० वचन प० मनकर खि० शघि छ०३ पुरिसे सद्दावेइ सद्दावेइत्ता, एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया उदाई हत्थिरायं पडिकप्पेह हयगयरहजोहकलियं चाउरांगाणं सेणं सण्णाहेह २ जाव मम एयमाणत्तियं खिप्पामेव पञ्चप्पिणह । तएणं से कोडुबिय पुरिसा कोणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ट तुट्टा जाव अंजलिंकहु एवं सामी तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुगंति पडिसुणइत्ता, खिप्पामेव छेयायरिओवए समइकप्पणावि कप्पेहिं सुनिउ अपने कोम्बिक [ आदेशकारी ] पुरुषों को चोलाये. बोलाकर ऐसा कहा कि अहो देवानुप्रिय ! मेरा | उदायी नामक हस्तीराज को सज करो और साथ ही अश्व, गज, रथ, योध युक्त चतुरंगिनी सेना भी-11 सज करो. ऐसा कार्य करके शीघ्र मुझे मेरी आज्ञा पीछी सुपर्द करो. ऐसी कूणिक महाराजा से आज्ञा सुनकर चे आदेशकारी पुरुषों दृष्ट तुष्ट हुवे यावत् हस्तद्वय जोडकर बोले कि अहो स्वामिन् : ' तथा इति ।
*प्रकाशझ-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी बालापप्तादजी*
भावार्थ