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________________ ९४४ शब्दार्थ एकरूप वि० विकुर्वना करने को गो गौतम नो नहीं इ० यह अर्थ स० योग्य अ० असंत भंभगवन् । 00 अ. अनगार बा. बाह्य पो० पुद्गल प० ग्रहणकर प० समर्थ ए. एकवर्ण ए० एकरूप जायावत् हं. हां विउवित्तए ? गोयमा ! नो इणटेसमटे | असंवुडेणं भंते !अणगारे बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगवण्णं एगरूवं जाव हंता पभू॥ से भंते ! किं इहगए पोग्गले परियाइत्ता विकुच्वइ, तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वइ, अण्णत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वइ ? गोयमा ! इहगए पोग्गले परियाइत्ता विउब्वइ, नो तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वइ, नो अण्णत्थगए पोग्गले जाव विउव्वइ, एवं एग वणं अणेगरूवं चउभंगो, जहा छट्ठसए नवमे उद्देसए तहा इहावि भाणियन्वं, नवरं इसलिये इस का आधिकार कहते हैं. अहो भगवन् ! असंवृति साधु बाह्य पुद्गल ग्रहण किये बिना क्या भावार्थ एक वर्ण एक रूप की विकुवर्णा करने को समर्थ है ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है. अहो भगवन् ! असंवृत्ति अनगार बाह्य पुद्गल ग्रहण करके वैक्रेय बनाने को क्या समर्थ हैं ? हां गौतम ! असंवृत्ति अनगार वाह्य पुद्गलों ग्रहण करके वैक्रेय करने को समर्थ हैं. अहो भगवन् ! क्या वे जहां वैक्रेय करे वहां के पुद्गल, वैक्रेय करके जहां जावेंगे वहां के पुद्गल अथवा अन्य स्थान के पुद्गल ग्रहण करके 1 विक्रेय करते हैं ? अहो गौतम ! जहां वैक्रेय करे वहां के ही पुद्गल ग्रहण करके वैक्रय करते हैं परंतु mawwwinnawwwmnama 42 अनुवादक-बालब्रह्मचरािमुनि श्री अमोलक ऋषिजी प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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