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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
८०३ अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
(द० दश प्रकार की वे० वेदना प० अनुभवते वि० विचरते हैं सी० शीत उ० ऊष्ण खु० क्षुधा पि० तृषा कं० खुजली पे० परवशपना ज०ज्वर दा दाह भ०भय सो०शोक ॥ ५ ॥ से०वह भं० भगवन् ह० हस्ति कुं० कुंथुको स० सरिखी अ० अप्रत्याख्यान क्रिया क० करे हं० हां गो० गौतम ६० हस्ति कुं० कुंथु जा० यावत् क० करे से० वह के० कैसे ए० ऐसा बु कहा जाता है जा० यावत् क० करे गो० गौतम अ० अविरति प० प्रत्ययिक से वह ते० इसलिये जा० यावत् क० करे ॥ ६ ॥ अ० आधाकर्मी आहार मं० माणा विहरंति, तं सीयं, उसिणं, खुहं, पिवासं, कंडु, पेरज्झं, जरं, दाहं, भयं, सोगं ॥ ५ ॥ से णूणं भंते ! हात्थस्सय कंथुस्सय समाचेव अप्पच्चक्खाण किरिया कज्जइ ? हंता गोयमा ! हात्थस्स कुंथुस्त य जाव कज्जइ ॥ से केणट्टेणं एवं बुच्चाइ जावकज्जइ ? गोयमा ! अविरइं पडुच्च से तेणट्टेणं जाव कज्जइ ॥ ६ ॥ अहाकचौवीस दंडक में पाती हैं ॥ ४ ॥ नारकी दश प्रकार की वेदना अनुभवते हुवे त्रिचरते हैं जिन के नाम. १ शीत २ ऊष्ण ३ क्षुधा ४ पिपासा ५ खुजली ६ परवशता ७ ज्वर ८ दाह ९ भय व अहो भगवन् ! हस्ती व कुंथुको क्या एक सरीखी अप्रत्याख्यान क्रिया लगती है ? हां गौतम! हस्ती व कुंथु को अप्रत्याख्यान क्रिया एक सारखी लगती है. अहो भगवन् ! किस कारन से हस्ती व कुंथु को एक सारखी अप्रत्याख्यान क्रिया लगती है ? अहो गौतम ! अविरति आश्रित हस्तीव कुंथु को एक सारखी अप्रत्याख्यान क्रिया)
१० शोक ॥ ५ ॥
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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