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शब्दाए ऐसे जा० यावत् वे० वैमानिक ॥ ३ ॥ क० कितनी भ० भगवन् स० संज्ञा द० दशसंज्ञा आ• आहार ।
संज्ञा भ० भयसंज्ञा मे० मैथुन संज्ञा प० परिग्रहसंज्ञा को क्रोध संज्ञा मा० मानसंज्ञा मा० मायासंज्ञा लो०१० ७ लोभसंज्ञा लो० लोक संज्ञा ओ. ओघसंज्ञा ए० ऐसे जा० यावत् वे० वैमानिक ॥ ४ ॥ ने० नारकी है हंता गोयमा ! नेरइयाणं पावे कम्मे जाव सुहे एवं जाव वैमाणियाणं ॥ ३ ॥ कइणं
भंते ! सण्णाओ प. ? दस सण्णाओ प० तंजहा-आहारसण्णा, भयसण्णा मेहुणसण्णा, परिग्गहसण्णा, कोहसण्णा, माणसण्णा, मायासण्णा, लोभसण्णा, लोगसण्णा,
ओहसण्णा, एवं जाव वेमाणियाणं ॥ ४ ॥ नेरइया दसविहं वेदणिजं पञ्चणुब्भव । भावार्थ
दुःख के हेतुभूत जानना. और जो निर्जरे, निर्जरते हैं व निर्जरेंगे वे सब सुख के हेनुभूत जानना. ऐसे ही
चौवीस दंडक का जानना ॥ ३ ॥ अहो भगवन् ! संज्ञा के कितने मेद कहे हैं ? अहो गौतम ! संज्ञा के E दश भेद कहे हैं. १ आहार संज्ञा २ भय संज्ञा ३ मैथुन संज्ञा ४ परिग्रह मंझा ५ क्रोध संज्ञा ६ मान संज्ञा १७ माया संज्ञा ८ लोभ संज्ञा ९ लोके संज्ञा व १० ओधे संज्ञा. उक्त दश प्रकार की संज्ञा नारकी आ १ १-२ मतिज्ञानावरणाय कर्म का क्षयोपशम से शब्दार्थ विषयवाली विशेषावबोध क्रिया जानी नावे सो लोक
संज्ञा और सामान्यावबोध क्रिया जानी जावे सो ओघ संज्ञा. कितनेक दर्शनोपयोग को ओघ संज्ञा ब ज्ञानोपयोग को १ लोक संज्ञा कहते हैं. और कितनेक सामान्य प्रवृत्ति सो ओघ संज्ञा व लोक दृष्टि सो लोक संज्ञा.
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती
48 सातवा शतक का आठवा उद्देशा
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