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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
08: पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 43
वेदना वे० वेदे नो० नहीं प० समर्थ स०समुद्र की पा० पार ग० जाने को नो० नहीं १० समर्थ स० समुद्र पा० पारगये रू० रूप पा० देखने को ॥ ७ ॥ ७ ॥
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छ० छद्मस्थ भ० भगवन् म० मनुष्य ती० अतीत अ० अनंत सा० शाश्वत स० समय के० केवल सं० संयम से ए० ऐसे ज० जैसे प० प्रथम शतक में च० चौथे उ० उद्देशे में त० तैसे भा० कहना जा०
पासित्तए । एसणं गोयमा ! पभूवि पकामाणिकरणं बेदणं वेदेइ ॥ सेवं भंते भंतेत्ति इति सत्तम सए सत्तमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ ७ ॥ ७ ॥
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छउमत्थेणं भंते ! मणूसे तीयमणंत सासयं समयं केवलेणं संजमेणं एवं जहा पढमसए
समर्थ नहीं है, देवलोक में जाने को समर्थ नहीं है व देवलोक के रूपों देखने को समर्थ नहीं है. ऐसे ही अहो गौतम ! संज्ञी जीव रूपादि देखने को समर्थ होने पर भी अज्ञानता के कारन से प्रकाम निकरण (वेदना वेदते हैं. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह सातवा शतक का सातवा उद्देशा पूर्ण हुवा || ७|७|| सातवे उद्देशे में छद्मस्थ को वेदना कही. यहांपर छद्मस्थ वक्तव्यता कहते हैं. अहो भगवन् ! छद्मस्थ मनुष्य अतीत अनादि अनंत परिणाम मे शाश्वत समय में संपूर्ण संयम व ब्रह्मचर्य से क्या सिझे, बुझे यावद सब दुःखों का अंत करे ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है. इस का सत्र कथन प्रथम शतक के
सातवा शतकका आठवा उद्देशा