SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 968
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अमोलक ऋाजी शब्दार्थ दीपक अं० अंधकार में रू० रूप पा० देखने को जे० जो णो ना ५० समर्थ पु० आगे रू० रूप अ. देखेविना पा० देखने को म० मार्गमें रू० रूप अ० गवेषणा कियेविना अ० अवलोकन कियेविना ॥९॥ अ० है। भ० भगवन् प० समर्थ प्र० प्रकामनिकरन वं. वेदना वे. वेदे हं० हां क० कैसे जा० यावत् . ९३० त्ताणं पासित्तए, जेणं नो पभू उढे रूवाई अणुलोयत्ताणं पासित्तए जेणं नो पभू अहे रूवाई अणुलोयत्ताणं पासित्तए एसणं गोयमा ! पभू अकामनिकरणं वेदणं वेदेइ ॥ ९ ॥ अत्थिणं भंते ! पभूवि पकामनिकरणं वेयणं वेदेइ ? हंता । कहण्णं जाव | वेदणं वेदेइ, ? जेणं नो पभू समुदस्स पारं गमेत्तए, जेणं नो पभू समुदस्स पारगयाई रूवाइं पासित्तए जेणं नो पभू देवलोगं गमित्तए, जेणं नो पभू देवलोगगयाई रूवाई भावार्थ सपास के रूप को अवलोकन करनेपर भी ऊर्थ में रूपों को अवलोकन किये बिना देखनेको समर्थ नहीं हैं, और अधो में रूप को अवलोकन किये विना देखने को समर्थ नहीं है. अहो गौतम ! इसी तरह संज्ञी नीव - अकाम निकरण वेदना वेदते हैं ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! रूप के दर्शन में संज्ञीपना से समर्थ होने पर भी संज्ञी जीव प्रकाम निकरण वेदना (बढती हुई अभिलाषा के कारणभूत वेदना) वेदते हैं ? हां गौतम ! वे प्रकाम निकरण वेदना वेदते हैं. अहो भगवन् ! वे प्रकामनिकरण वेदना कैसे वेदते हैं ? अहो, गौतम ! जैसे कोई समुद्र को पार पहुंचने को समर्थ नहीं हैं, जैसे समुद्र की पारंगये हुवे रूपों को देखने को • प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * अनुवादक-बालब्रह्मचारी
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy