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________________ शब्दार्थ उत्थान क० कर्म ब० क्लीं० वीर्य पु० पुरुषात्कार पराक्रम से अ० अन्यतर वि० विपुल भो० भोगोप भोग भुं० भोगवता विविचरने को त०इसलिये भो० भोगी भो० भोग प०त्यजता म० महानिर्जरा ममहा प० पर्यवसान भ होवे ॥ ६ ॥ आ० अवधिज्ञानी मं० भगवन् म० मनुष्य जे० जो भ० भव्य अ० अन्यतर दे देवलोक में ए० ऐसे ज० जैसे छ० छमस्थ जा० यावत् प० पर्यवसान भ० होवे प० परम अवधि कम्मेणवि, बलेत्रि, वीरिएणवि, पुरिसक्कारपरक्कमेणवि अण्णयराई विउलाई भोग भोगाई भुंजमाणे विहरित्तए, तम्हा भोगी भोगे परिचयमाणे निज्जरे महापज्जवसाणे भइ ॥ ६ ॥ आहोहिएणं भंते ! मणूसे जे भविए अण्णयरेसु देवलोएसु एवं चेव जहा छउमत्थे जाव महा पज्जवसाणे भवइ ॥ परमाहोहिएणं भंते ! मणू जे भविए तेणं चैव भवग्गहणणं सिज्झित्तए जाव अंतं करितए सेणूणं { पुरुष उत्थान कर्म, बल, वीर्य व पुरुषात्कार पराक्रम से विपुल भोगों भोगवते हुवे विचरने को समर्थ है. इसी से भोगी पुरुष भोगों को सजता हुआ निर्जरा व महापर्यवसान करता है ॥ ६ ॥ (जैसे देवलोकमें उत्पन्न होने योग्य क्षीण भोगी भोग त्यजता हुवा निर्जरा व महा पर्यवसान करता है। वैसे ही नियत क्षेत्र वाला अवधिज्ञानी का जानना परम अवधि ज्ञानी मनुष्य उसी भव में सिद्ध होते • यावत् सब दुःख का अंत करते हैं वे क्षीण भोगी बने हुए उत्थानादि से अन्यतर भोगों को भोगते सूत्र भावार्थ ॐ पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती सूत्र सातवा शतक का सातवा उद्देशा ९३५
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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