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________________ शब्दार्थ | भावार्थ 408 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी अ० अन्यतर देवदेवलोक में दे० देवषने उ० उत्पन्न होने का से० वह भ० भगवन् स्त्री० क्षीण भोगी णो० नहीं प० समर्थ उ० उत्थान क० कर्म ब०बल वी० वीर्य पु० पुरुषात्कार पराक्रम से वि० विपुल भो० भोगोप ( भोग भुं० भोगवते वि० विचरने को से० वह मं० भगवन् ए० यह अर्थ ए० ऐसे व० कहते हो गो० गौतम नो० नहीं इ० यह अर्थ स० समर्थ से ० वह के० कैसे भ० भगवन् गो० गौतम प० समर्थ से० वह उ० भंते! मणू जे भविए अण्णयरेसु देवलोएस देवत्ताए उववजित्तए सेणूणं भंते ! सेखीणभोगी णो पभू उट्ठाणेणं कम्मेणं बलेणं वीरिएणं पुरिसक्कारपरक्कमेणं बिउलाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए सेणूणं भंते ! एयमट्ठे एवं वयह ? गोयमा ! बो इणट्ठे समट्टे | से केणद्वेणं मतं ! एवं बुच्चइ ? गोयमा पभूणं से उट्ठाणेण वि {गुने ||५|| अहो भगवन् ! जो कोई छद्मस्थ मनुष्य किसी देवलोक में देवतापने उत्पन्न होने योग्य होता है। वह क्षीण भोगी बना हुवा उत्थान, कर्म, वल, वीर्य व पुरुषात्कार पराक्रम से विपुल भोग भोगने को समर्थ { नहीं होता है. क्या इस अर्थ को आप ऐसे ही कहते हो ? + अ गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है. अहो भगवन् ! किस कारन से यह अर्थ योग्य नहीं है ? अहो गौत्तम ! वह क्षीण भोगी अहो भगवन् ! * प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * + यहां पर प्रश्नकर्त्ता का यह अभिप्राय है कि जो भोग भोगने को समर्थ नहीं हैं. वह अभोगी होता है और अभोगी भोगत्यागी नहीं हो सकता है. भोगकात्याग किये बिना निर्जराभी कैसे हो सके ? ९३४
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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