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शब्दार्थ
१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी ६
कहा जाता है गो गौतम जजिस को का०क्रोधे मा०मान मा०माया लो लोभ वोक्षीण हुचे होवे त० उस को ई०ईर्यापथिक कि क्रिया क०करे त तैसे जायावत् उ० उत्सूत्र री०चलेत को सं०मांपरायिक कि क्रियाई विकामा ॥ जीवाणं भंते ! कामा अजीवाणं कामा ? गोयमा ! जीवाणं कामा नो अजीवाणं कामा ॥ कइविहेणं भंते ! कामा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा षण्णत्ता तजहां-सदाय,रूवाय.॥ २ ॥ रूवी भंते!भोगा अरूबीभोगा ? गोयमा ! रुवीभोगा नो अरूवी भोगा॥सचित्ता भंते ! भोगा, आचत्ता भोगा? गोयमा! सचित्तावि भोगा आचित्तावि भोगा॥जीवा भंते ! भोगा अजीवाभोगा ? गोयमा! जीवावि भोगा अजीवा विभोगा ॥ जीवाणं भंते ! भोगा अजीवाणं भोगा ? गोयमा ! जीवाणं भोगा नो काम रूंपी हैं अरूपी नहीं है. क्योंकि पुद्गल धर्मपना से उन में मूर्नता रही हुई है. अहो भगवन् ! क्या काम सचित्त हैं या अचित्त हैं.? अहो गौतम ! मन माहित प्राणी के रूप देखने की अपेक्षा से काम सचित्त हैं, और शब्द द्रव्य की अपेक्षा से अथवा असंज्ञी जीव के शरीर के रूप की अपेक्षासे काम
१ काम्यन्ते अभिलष्यन्त एव न तु विशिष्टशरीरस्पर्शद्वारणो पयुज्यन्ते एते कामाः अर्थात् मात्र यांच्छना करना परंतु शरीर से स्पर्श नहीं करना सो काम. २ रूपं मूर्तता तदस्ति येषां ते रूपिण स्तद्विपरीतास्त्व रूपिणः अर्थात् जिस को मूर्तता रही हुई है वह रूपी हैं और उस से विपरीत मूर्तता रहित अरूपी है.
* प्रकाशक-राजावहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ र
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