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शब्दार्थ सं. सांफ्रायिक कि क्रिया क० करे गो गौतम से० संवृत अ० अनगार जा० यावत् ई. र्या Loo पथिक कि क्रियाकरे नो० नहीं सं० सांपरायिक क. करे से० वह के. कैसे भ० भगवन् ए० ऐसा ७००
गोयमा ! जस्सणं कोह माण माया लोभा वोच्छिण्णा भबंति तस्सणं ईरियावहिया किरिया कजइ, तहेव जाव उस्सुत्तरीयमाणस्स संपराइया किरिया कजइ । सेणं अहासत्तमेव रियइ से तेणट्रेणं गोयमा ! जाव नो संपराइया किरिया कजइ ॥१॥ रूवी भते ! कामा अरूवी कामा ? गोयमा ! रूबीकामा समणाउसो नो अरूवीकामा ॥ सचित्ता भंते ! कामा अचित्ता कामा? गोयमा! सचित्तावि कामा अचित्तावि
कामा ॥ जीवा भंते ! कामा अजीवा कामा ? गोयमा ! जीवावि कामा अजीवामें वांधते है. दूसरे समय में वेदते हैं व तीसरे समय में निर्जरते हैं. जिन को क्रोधादि नष्ट नहीं हुवे हैं . उन को सांपरायिक क्रिया लगती है यावत् सूत्रानुसार चलनेवाले को ईपिथिक क्रिया लगती है व उत्सूत्रानुसार चलनेवाले को सांपरायिक क्रिया लगती है. संवृत अनमार उपयोम सहित बैठते, 'उठते, 20 | वत्र पात्रादि रखते सूत्रानुसार चलनेवाले होते हैं और इसी से उन को ईर्यापथिक क्रिया लगती है पर मांपरायिक क्रिया नहीं लगती है ॥ १॥ संवृत अनगार कामभोग के त्यागी होते हैं इसलिये कामभोग का कथन करते हैं. अहो भगवन् ! काम क्या रूपी है या असली है ? अहो गौतम ! श्रमण ! आयुष्मन् !
पंचमांग विवाह पण्णति (भगवती)मत्र
सातवा शतकका सातवा उद्देशा
भावार्थ
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