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में का काल करके क० कहां ग० जावेंगे उ० उपजेंगे गो० तौतम प्रायः न नरक ति नियंच जो योनि में } *
उ० उपजेंगे ते० वे सी० सिंह व० व्याघ्र व० वर्गजाति केपंशु दी० द्वीपि का अ० अरींछ त० तरक्ष प० oye V जरख नि० निःशील क. कहां उ० उपजेंगे गो० गौतम न० नरक ति० तिर्यंच योनि में उ० उपजेंगे
ते वे दं० ढंक क० काक पि० पिलक म. मयूर नि० निःशील जा. यावत् न. नरक नितियचयोनि में उ० उपजेंगे मे० वह ए० ऐसे भ० भगवन् ॥ ७ ॥ ६ ॥
838 पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
ति ? गोयमा ! उस्सण्णं नरगतिरिक्ख जोणिएसु उववजिहिति ॥ तेणं भो ! ढंका कंका पिलका मदुगा सिही निस्सीला तहेव जाव उस्सण्णं नरग तिरिक्ख जोणिएसु उववजिहिंति ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ॥ सत्तम सयस्स छट्ठो उद्देसो सम्मत्तो ॥७॥६॥
2034 सातवा शतक का छठा उद्देशा 8-8om
भावार्थ भगवन् ! उस समय के सिंह, व्याघ्र, दीपिका, चित्ता, रीछ व जरख वगैरह जानवरों वहां से काल
हैं करके कहां उत्पन्न होवेंगे? अहो गौतम ! उक्त चतुष्पद जानवरों नरक व तिर्यंच में उत्पन्न होवेंगे.
अहो भगवन् ! उस समय में ढंक, कंक पीलक, जलकाक मयूरादि पक्षियों कहां उत्पन्न होवेंगे ? अहो । गौतम ! उक्त पक्षियों काल के अवसर में काल करके नरक तिर्यंच में उत्पन्न होवेंगे. अहो भगवन् ! आपके वचन सल्य हैं. यह सातवा शतक का छठा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ ७॥ ६॥ x