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शब्दार्थ
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अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी 802
हुवे नो० नहीं आ० पानी व० बहुत भ० होगा त० तब ते० वे म. मनुष्य सू० सूर्य उ० उद्गमन मु. मुहूर्त सू० सूर्यास्त मु० मुहूर्त वि. विलसे नि० नीकलेंगे नि नीकलकर म० मच्छ क० कच्छ भ० स्थल में गारखेंगे सी शीत त ताप से त० तप्त क०कच्छ मच्छ से ए०इक्कीस वर्ष स०सहस्र वि. वृत्तिकरते वि० विचरेंगे ते वे भ० भगवन् म मनुष्य नि०निःशील निःनिर्गुण नि०मर्यादा रहित निष्प्रत्याख्यान रहित पो०१ पौषध उ० उपवास उ०प्रायः मं० मांसाहारी म० मच्छाहारी खो० क्षुद्राहारी कु० कुणपाहारी का कालके अवसर
मच्छाहारा, खोदाहारा, कुणिमाहारा, कालमासे कालंकिच्चा कहिं गच्छिहिति, कहिं उब अ वजिहिंति ? गोयमा ! उस्सण्णं नरगतिरिक्खजोणिएसु उववाजिहिंति, ॥ तेणं भंते ।
सीहा बग्घा वग्गदीविया अच्छा तरच्छापरस्सरा निस्सीला तहेव जाव कहिं उववजिहिपानी बहुत थोडा रहेगा. उस समय में उक्त बील में रहने वाले मनुष्यों सूर्योदय पहिले एक मुहूर्त व सूर्या स्त पीछे एक मुहूर्त में बाहिर नीकलेंगे. और मत्स्यादि नदी में से नकाल कर रेती में डाल देवेंगे वे शीत व ऊष्णतासे निर्जीव हो जायेंगे और उस से अपनी आजीविका करेंगे. ऐसा दुःख इक्कीस हजार वर्षतक रहेगा. अहो भगवम् ! उक्त शील, गुण, मर्यादा, प्रत्याख्यान व पौषधोपवास रहित, वैसे ही मांस के आहार करनेवाले, मत्स्य के आहार करनेवाले, क्षुद्र व मृतक का आहार करने वाले मनुष्य काल करके , कहां जावेंगे व कहां उत्पन्न होवेंगे ? अहो गौतम ! वे प्रायः नरक व तिर्यंचयोनि में उत्पन्न होवेंगे. अहो ।
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
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