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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
88 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
खराब प्रमाण कु० खराब संस्थान कु० कुरूप कु० खराब स्थान आ० आसन कु० खराब शैय्या कु· खराब (भोजन अ० अशुचि अ० अनेक व्याधि प० पीडित अं० अंगोपांग ख० स्खलित वि० विभंगगति निο निरुत्साह स० सत्व प० रहित वि० विगत चि० चेष्टा न० नष्टतेज अ० वारंवार सी०शीत उ० ऊष्ण ख० (कठीन फ० परुष वा० वायु वि० अतीव्याप्त म० मलीन पं० धुल र० रज गु०भरे हुवे अं० अंगोपांग ब० बहुत को० क्रोध मा० मान मा माया लो० लोभ अ० अशुभ दु० दुःख भो० भोगी उ० उत्सन्न ध० बीयं बीयामेत्ता बिलवासिणो भविस्संति | तेणं भंते मणुया किमाहार माहारेर्हिति गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं गंगासिंधूओ महानदीओ रहपहवित्थराओ अक्खसोयप्पमाणमेत्तं जलं वोज्झिहिंति, सेवियणं जले बहुमच्छकच्छ भाइण्णे नो चेवणं आयबहुले भविस्सइ, तरणं ते मणुया सूरुग्गमणमुहुत्तं सिय सूरत्थमणमुहुत्तं सिय बिलेहिंतो निद्धाहिंति, बिलेहिंतो निदाइत्ता, मच्छकच्छ भथलाई गाहेहिंति गाहित्ता ( पीडित होंगे. वे आकूल व्याकूल होकर चलनेवाले, उत्साह व सत्व से वर्जित, शुभ चेष्टा राहत, तर्ज {रहित, वारंवार शीत, ताप, तीक्ष्ण वायु मैल, धूल से पीडित होवेंगे. बहुत क्रोध, मान, माया व लोभ के { धारक अशुभ दुःख भोगनेवाले, शुद्ध सम्यक्त्व व धर्म से भ्रष्ट, उत्कृष्ट एक हाथ
शरीर की अवगाहना
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
वाले, जघन्य सोलह उत्कृष्ट वीस वर्ष तक के आयुष्यवाले, पुत्र पौत्र आदिका बहुत परिवारवाले बहुत मम- *
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