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________________ शब्दाथै वाले ज० जरा प० परिणत जैसे थे० स्थविरनर ५० विरल १० टूटी दं० दंतश्रेणी उ० भयंकर ब. घट । के मुख जैसे वि० ० विषम नयन वाले वै० वक्रनाशिका वाले व० वक्र वि.विकृत भे० बीभत्स मु०० मुखवाले क. रोगयुक्त सि० शिर अ० अभिमुख ख० कठीन ति तीक्ष्ण न० नख के० कुचरा हुवा वि० विकराल त शरीर ददर दर कि०किटिभ सिक्षुद्रकृष्ट भविषय फुस्फुटित क०कठिन छ० चमडी वि० विचित्र अंग टोखरावगति वि०विषम सन्थि बं०बंधन उ० उक्कडु वि०विभक्त दु०दुर्वल कुखराब संघयण कु० नट्टतेया, अभिक्खणं सीय उण्ह खरफरुस वायविज्झडिय मलिण पंसुरय गुडियंगमंगा बहु कोहमाणमाया बहुलोभा, असुभदुक्ख भोगी उस्सण्णं, थम्मसण्ण सम्मत्तपरिभट्ठा ॥ उक्कोसेणं स्यणिप्पमाणमेत्ता, सोलस वीसइवास. परमाउसो पुत्तनत्तु परि यार पणय बहुला गंगासिंधूओ महानदीओ वेयड्ढंच पव्वयं निस्साए बावत्तरि नियोदा भावार्थ गेग से व्याप्त होगा अति तीक्ष्ण नख होने से सदैव विलूरते रहेंगे. वे ऊंट की तरह वक्र चाल चलनेवाले होंगे विषम शरीर की संधिबंध के धारन करनेवाले, ऊंची, नीची विषम हड्डियों, पसलियों युक्त दुर्बल शरी-1 * वाले, खराब शरीर के संघयनवाले, खराब प्रमाणवाले, खराब संस्थानवाले, व कुरूप होंगे खराब स्थान में बैठनेवाले, शयन करनेवाले, खराव भोजन करनेवाले, अशूचि से परिपूर्ण व अनेक प्रकार की व्याधि से पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती ) सत्र 28 vwwwwwwwwww 2-8888 सातवा शतकका छठा उद्देशा 8948
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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