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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
42 पंचमाङ्ग विवाह पण्णात ( भगवती ) सूत्र
१६०१२१ सातवा शतक का छठा उद्देशा
जैसी त० तप्त समज्योति भूत धू० बहुत धूलिवाली रे० बहुत रेतीवाली पं० पंक प० नीलण च० कर्दम) ध० धरणि गो० गोचर स० सत्व दु० दुर्निष्क्रमण भ० होगा दु० कुरुप दु० दुष्टवर्ण वाले दु० दुर्गंधी दु० खराब रसवाले दु० खराब स्पर्श वाले अ० अनिष्ट अ० अकांत जा० यावत् अ० अमणाम ही० स्वर वाले दी दीनस्वर वाले जा० यावत् अ० अमणामस्वर वाले अ० अनादेय वचनवाले (नि० मिर्लज्ज कू० कूड क० कपट क० कलह व० वध व बन्ध वे० वैर में नि० आसक्त म० मर्यादा अ अट्ठा अकंता जाव अमणामा, हीणसरा दीणसरा, अणिदुसरा, जाव अमणामसरा अणाजवयणपच्चाया निलज्जा, कूड कवड कलह वहबंधवेर निरया, मज्जायातिकमप्पहाणा, अक्कज्जनिच्चुज्जुत्ता, गुरुनियोगविणय रहियाय, विकलरूबा, परूढनह केस मंसुरोमा, कालाखरफरुसज्झामवण्णा, फुट्टसिरा कावेलपलियकेसा बहुपहारुसंविद्ध दुदंसणिज्जरुवा, संकुडिय बलितरंग परिवेढियंगमंगा, जरा परिणयव्वथेरेगनरा पृथ्वी पर चलनेवाले जीवों को उस पर चलते हुवे बहुत दुःख होगा. अहो भगवन् ! उस समय में भरत क्षेत्र के मनुष्य का कैसा आकार भाव होगा ! अहो गौतम ! उस समय में भरत क्षेत्र के मनुष्य ) हीन स्वर, दीन स्वर,
खराब वर्ण, गंध, रस, व स्पर्शवाले, अनिष्ट, अक्रान्त अप्रिय, अमनोज्ञ, अमणाम,
अनिष्ट स्वर यावत् अमणाम स्वरवाले, अनादेय वचनवाले, निर्लज्ज, कूड, कपट, कलह, वध, बंध व वैर में } *
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