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शब्दार्थ |
भावार्थ
4 अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
( उत्स्थल भ० रेतीकस्थल आदि वे० वैताढ्य गि गिरि ब० वर्जकर वि。समहोगा स०सलिल वि० बिल ग० (खड्डे दु० दुर्ग वि० विषम नि० ऊंचानीचा गं० गंगा सिं० सिंधु व० वर्जकर स० समहोगा ती० उस भं० भगवन् स० काल में भा० भरत क्षेत्र की भू० भूमि का के० कैसा आ० आकारभाव १० प्रत्यक्ष भ० होगा गो० गौतम भू० भूमि भ० होगी इं० इंगाल भूत मू० मुर्मुर भूत छा० क्षार भूत त० तप्स कवेलू भावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! भूमी भविस्सइ, इंगालभूया, मुम्मुरभूया, छारियभूया, तत्तकवेलयभूया, तत्तसमजोइभूया, धूलिबहुला, रेणुबहुला, पंकबहुला, पणग बहुला, चलणिबहुला, बहूणं धरणिगोयराणं सत्ताणं दोणिक्क मायावि भविस्सइ ॥ तीसणं भंते ! समाए भार हेवासे मणुयाणं केरिसए आगार भाव पडोयारे भवि - सइ ? गोयमा ! मणुया भविस्संति, दुरुवा, दुवण्णा, दुग्गंधा, दुरसा दुप्फासा, का विध्वंन करेंगे. वैताढ्य पर्वत छोड़कर सब पर्वत, गिरि, डुंगर, स्थल, रेती के स्थान और पर्वत की पास की भूमी वगैरह सब का नाश होगा. और गंगा व सिंधू ये दो नदियों छोड़कर अन्य सब नदी, नाले बराबर होजायेंगे. अहो भगवन् ! उस समय में भरत क्षेत्र की भूमि कैसी होगी ? अहो गौतम ! उस समय में भरत क्षेत्र की भूमि अग्निभूत, मुर्मुर भूत, भस्मभूत, नपेहुवे कवेलू समान, तप्त अनि समान, बहुत धूल, बहुत रेणु बहुत पंक, बहुत फुलन, व बहुत चलाने ( कर्दम ) वाली होगी.
प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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