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शब्दार्थ
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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी *
अधिक चं० चंद्र सी० शीत मो• मुकेगा अ० अधिक सू. मूर्य त० तपेगा अ० अथवा अ० वारंवार २० बहुत अ० अरम मे०मेघ वि०विरसमेघखा०क्षारमेघ खे० करीषमेघ अ० अग्निमेघ वि०विद्युन्मेघ वि-विषमेघ अ० अशनिमेय अ० नहीं पीने योग्य पानी वा०व्याधि रो०रोग वे वेदना उ०उदीरणा प० परिणाम स० पानी स० अमनोज्ञपानी चं० प्रचंड अ० वायु प० प्रहर ति० तिक्ष्ण धा० धार नि० निपात ५० प्रचुर व० वर्षा
समयलुक्खताएणं । अहियं चंदा सीयं मोच्छंति, अहियं सूरिया तवइस्संति, अदुस्तरंचणं अभिक्खं बहवे अरसमेहा, विरसमेहा, खारमेहा, खत्तमेहा, अग्गिमेहा, विज्जुमेहा, विसमेहा, असणिमेहा, अपिवणिजोदगा, अयावणिजोदगा वाहिरोगवेयणोदीरणापरिणामसलिला, अमणुण्णपाणियगा, चंडानिलपहयतिक्खधारानिवाय पउरं
वासं वासिहिंति, ॥ जेणं भारहे वासे गामागर नगर खेड कव्वड मडंव दोणचलेगा कि जिस से धूली आदि एकत्रित होवेंगे. इस समय में वारंवार धूल उडने से दशोंदिशाओं रजसहित मलिन होवेंगी. धूलि से मलिन अंधकार समुह होने से प्रकाश का आविर्भाव बहुत कठिनता से होगा.
समय की रुक्षता से चंद्र में अधिक शीत होगा, और सूर्य भी अधिक तपेगा. और भी उस क्षेत्र में वारं"वार बहुत अग्स मेघ, विरस मेघ, क्षार मेघ, करीष मेघ, आग्नि मेघ, विद्युन्मेष, विष मेघ, अशनि [वज्र ] मेघ,
अपेय पानीवाला, व्याधि, रोग, वेदना व उदीरणारूप परिणाम समान पानीवाला व अमनोज्ञ पानीवाला
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ
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