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शब्दा
पंचांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र-80
जं जंबद्वीप में भ० भगवन् इ० इस उ० अवसर्पिणी में दु० दुषमादुषम स० काल में उ० उत्कृष्ट का
काष्टा को पा० प्राप्त भ० भरत क्षेत्र का के० कैसा आ० आकार भाव ५० प्रत्यवतार भ. होगा गोर । गौतम का० काल भ. होगा हा हाहाभूत भं० भांभाभूत को० कोलाहल भूत स० समय के अ० अनुभाव ।
से ख० कठोर फ. परुप धु० धूलि म० मैल दु० दुःसह वा० व्याकुल भ० भयंकर वा० वायु सं० संवृतवायु वा० चलेगा इ० यहां अ० वारंवार धू० धूम्र से दि० दिशा स० सब बाजु र रजयुक्त रे० धूलि क० मलिन तक अंधकार प० समुह नि प्रकाश रहित स० समय लु० रुक्षपना से अ.
॥ १० ॥ जंबूद्दीवेणं भंते ! दीवे इमीसे उसप्पिणीए दुसमदुसमाए समाए उत्तमकट्टपत्ताए भारहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! कालो भविस्सइ हाहाभूए, भंभाभूए, कोलाहलभूए। समयाणुभावेणयणं खरफरुसधुलिमइला, दुविसहा, वाउला, भयकरावाया, संवगाय वाहिति, इह
अभिक्खं २ धूमाहितिय दिसासव्वओ समंता रउस्सला, रेणुकलुसतमपडलनिरालोगा जम्मूदीप में इस अवसर्पिणी का परमकाष्टावाला छठा दुषमा दुषम नामक समय में भरत क्षेत्र का कैसा आ-30
कारभाव प्रत्यवतार होगा? अहो गौतम ! उस समय में ऐसा काल होगा कि दुःख से लोकों हाहाकार ७ करेंगे, भों भों ऐसा आत व कोलाहल शब्द करेंगे. ऐसे काल के प्रभाव से असंत कठोर स्पर्शवाला व मलिन धूल का पत्रन चलेगा, वह बहुत दुःसह व भय उत्पन्न करनेवाला होगा और ऐसा वर्तुलाकार वात ।
घा शतक का छठा उद्देशा
भावार्थ