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शब्दार्थ कि क्या आ० आभोगनिवर्तित आयुष्य वाले अ०अनाभोगनिवर्तित आयुष्य वाले गो० गौतम नो नहीं ।
आ० आभोगनिवर्तित आयुष्य वाले अ० अनाभोगनिवर्तित आयुष्य वाले ए० ऐसे ने नारकी जा० यावत् वे० पैमानिक ॥ ६ ॥ भं० भगवन् जी० जीव क० कर्कश वे० घेदनीय कर्म क• करे ६० हां अ० है क०
गोयमा ! इहगए सिए महावेयणे सियअप्पवेयणे, एवं उववज्जमाणेवि, अहेणं उववन्ने भवइ तओपच्छा बेमायाए. वेएइ ॥ एवं जाव मणुस्सेस ॥ वाणमंतर जोइसिय वेमाणिएसु जहा असुरकुमारेसु ॥ ५ ॥ जीवाणं भंते ! किं आभोगनिव्वत्तियाउया अणाभोगनिव्वत्तियाउया ? गोयमा ! नो आभोगनिव्वत्तियाउया, अणाभोगनिव्व
त्तियाउया, एवं नेरइयावि एवं जाव वेमाणिया ॥ ६ ॥ अत्थिणं भंते ! जीवाणं भावार्थ- काचित् महावेदनाबाले व क्वचित् अल्प वेदनावाले होते हैं. ऐसे ही उपजते हुवेका जानना. उत्पन्न हुवे पीछे मर्यादा | रहित वेदना वेदते हैं. ऐसे ही शेष चार स्थावर तीन विकलेन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय व मनुष्य का जानना.
वाणव्यंतर, ज्योतिषी व वैमानिक का असुरकुमार जैसे कहना ॥५॥ अहो भगवन् ! क्या जीव जान-100 ता हुवा आयुष्य का बंध करे या नहीं जानता हुवा आयुष्य का बंध करे ? अहो गौतम ! जीव जानता हुवा आयुष्य का बंध करे नहीं परंतु नहीं जानता हुवा आयुष्य का बंध करे. ऐसे ही वाणव्यंतर तकos चौवीस ही दंडक का जानना ।। ६ ।। अहो भगवन् ! क्या जीव कर्कश वेदनीय [रौद्र दुःखवाले ] कर्म हैं।
विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र
सातवा शतकका छठा उद्देशा