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गोयमा ! इहगए सिय महावेयणे, सिय अप्पवेयणे, उववजमाणे सिय महावैथणे सिय अप्पवेयणे अहेणं उववन्ने भवइ तओ पच्छाः एगंतदुक्खं वेयणं वेएइ, आहच्चसायं॥३॥ जीवणं भंते ! जे भविए असुरकुमारेसु उववाजित्तए पुच्छा । गोयमा ! इहगए सिय महावयणे सिय अप्पवेयणे, उववज्जमाणे सिय महावयणे, सिय अप्पवेयणे; अहेणं उववन्ने भवइ तओपच्छा एगंत सायं वेयणं वेएइ, आहच्च असायं ॥ एवं जाव
थाणिय कुमारेसु ॥ ४ ॥ जीवेणं भंते ! जे भविए पुदवि काइएसु उववजित्तए पुच्छा। नीय कर्मका उदय से महा वेदनावंत होते हैं कितनेक. अल्प वेदना वाले. भी होते हैं कितनेक उत्पन्न
होते कर्मका बाहुल्यतासे महा वेदना वाले होते हैं और कितनेक अल्प वेदना वाले होते हैं. और नारकी में भावार्थ
उत्पन्न हुवे पीछे एकान्त दुःख होता है परंतु क्वचित् परमाधकिा वियोग होने से अथवा तीर्थंकरों का जन्मादि कल्याणक होने से साता वेदना होती है ॥ ३ ॥ अहा भगवन् ! जो जीव असुरकुमार में उत्पन्न होने वाला है वह क्या यहां रहा हुवा महाक्दना वाला होता है उत्पन्न होते महावेदना वाला होता है या उत्पन्न हुए पीछे महावेदना वाला होता है. ? अहो गौतमः ! अमुरकुमार में उत्पन्न होने वाला यहां रहाहुवा महावेदना वाला होता है और क्वचित् अल्प वेदना वाला भी होता है उत्पन्न होते भी महावेदना व अल्प
वंदना वाला होता है परंतु उत्पन्न हुवे पीछे एकान्त साता वेदना वेदने वाला होता है परंतु क्वचित बज्र, | प्रहारादिक की वेदना वेदता है. एसेही स्थनितकुमार तक का जानना॥४॥ पृथ्वीकायिक जीव यहां रहेहुवे
१.१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मनि श्री अमोलक ऋषिजी
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी मालामतादजी *