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शब्दाथ
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
रा० राजगृह जा. यावत् एक ऐसा व. बोले जी. जीव भं. भगवन् जे. जो भ. भव्य ने में उ० उपजने से वह भ० भगवन् किं. क्या इ. यहां से ने० नरक का आ० आयुष्य ५० बांधे उ० उपजता ने नरके का आ० आयुष्य प. बांधे उ० उत्पन्न हुवा ने नरक का आ० आयुष्य ५० बांधे गो० गौतम इ. यहां से ने नरक का आ० आयुष्य प. बांघे नो० नहीं उ० उपजता ने का आ• आयुष्य प० बांधे नो• नहीं उ० उत्पन्न हुवा ने० नरक का आ० आयुष्य १० बांधे ए. ऐसे
रायगिहे जाव एवं वयासी-जीवेणं भंते !जे भविए नेरइएसु उववजित्तए सेणं भ! किं इहगएनेरइयाउयं पकरेइ,उववज्वमाणे नेरइयाउयपकरेइ,उववण्णे नेरइयाउयंपकरेइ ?गोयमा! इयगए नेरइयाउयं पकरेइ नो उववज्जमाणे नेरइयाउयं पकरेइ, नो उववन्ने नेरइयाउयं । पांचवे उद्देशे में योनि संग्रह का अधिकार कहा हैं. योनि संग्रह आयुष्यवंत जीप को होवे इसलिये आयुष्य का अधिकार कहते हैं. अहो भगवन् ! जो जीव नरक में उत्पन्न होने योग्य होता है वह क्या यहां रहे हुवे नारकी का आयुष्य वांधता है, उपजता हुआ नारकी का आयुष्य बांधता है अथवा से उत्पन्न हुए पीछे नारकी का आयुष्य बांधता है ? अहो गौतम ! जो जीव नारकी में उत्पन्न होने योग्य होता है वह यहां मनुष्य तिर्यंच में रहा हुआ नारकी का आयुष्य वांधता है परंतु उत्पन्न होते याने त्पन्न हवे पीछे नारकी का आयुष्य नहीं बांधता है ऐसे ही अमुरकुमारादि दश भुवनपति यावत् वैमानिक
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी चालाप्रसादजी *
भावार्थ