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शब्दार्थ
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सत्र |
जावे म० बडे मो० गौतम से० चे वि० विमान ५० प्ररूरे जो मोनितं० संग्रह ले लेश्या दी दृष्टि का ज्ञान जो योग उ० उपयोग उ उपपात ठि• स्थिति स०समुद्धात च० चयन जानाति कु० कुल वि०प्रकार॥७॥५॥ लयागं । गोयमा ! ते विमाणा पण्णत्ता-जोणी संगहलेस्सा, दीट्ठी नाणेय जोग उवओगे ॥ उववायट्टिइ समुग्घाय चवण जाइ कुल विहीओ, ॥ ५ ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ॥ सत्तम सयस्स पंचमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ ७ ॥ ५ ॥
भावार्थ
का उपपात है, जघन्य अंतर्मुहूर्न उत्कृष्ट पल्य के असंख्यातवे भाग की स्थिति है, आहारक व केवली समुद्धात छोडकर पांच समुद्धात हैं, चव करके चारों गति में जाते हैं, जाति चार लाख की. कुल बारह
लक्ष क्रोड, वगैरह विस्तार पूर्वक कथन जीवाभिगम सूत्रानुसार जानना. यावत् विजयादि पांच अनुत्तर E विमान को कोई महर्द्धिक यावत् महानुभाव देव आवर्तना देवे तो क्या उन का अंत कर सके ? अहो
गौतम ! तीन चपटिका में इक्की वक्त संपूर्ण जम्नदीप को आवर्तना देनेवाला कोई महद्धिक यावत् 50 महानुभाग देव छ मास पर्यंत परिभ्रमण करे तो भी पांचों विमानों कोआवर्तना देसके नहीं. सर्वार्थसिद्ध
विमान जम्बूद्वीप प्रमाण एक लक्ष योजन का लम्बा चौडा कहा है. वगेरह सब कथन जीवाभिगम सूत्रसे जानना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं यह सातवा शजक का पांचवा उद्देशा पूर्ण हुआ ॥७॥५॥ *
4११ पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र
सातवा शतकका पांचवा उद्देशा*
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