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शब्दार्थ
* प्रकाशक-राजाबहादुर
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१०१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी 89
रा राजगृह जायावत् ए०ऐसा व०बोले ख०खेचर पं० पंचेन्द्रिय तिर्यंच की भं० भगवन् क कितने प्रकार की योनि सं० संग्रह गो० गौतम ति० तीन प्रकार की जो० योनि० संग्रह अं० अंडज पो० पोतज सं० संमूच्छिम ए. ऐसे जा० यावत् जी० जीवाभिगम में जा० यावत् नो० नहीं ते० वे वि० विमान में वी.
रायगिहे जाव एवं वयासी-खहयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियाणं भंते ! कइविहे जोणी संगह पण्णत्ते ? गोयमा! तिविहे जोणी संगहे पण्णत्ते, तंजहा-अंडया, पोयया संमुच्छिमा, एवं जहा जीवाभिगमे,, जाव नो चेवणं ते विमाणे वीईवज्जाए, महा
चतुर्थ उद्देशे में संसारी जीव का कथन किया. संसारी जीव योनि से उत्पन्न होते हैं इसलिये योनिका प्रश्न करते हैं. राजगृही नगरी के गुणशील नामक उद्यान में श्री श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी को श्री गौतम स्वामो वंदना नमस्कार कर ऐसा कहने लगे कि अहो भगवन् ! खेचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय की कितने प्रकार की यानि कही : अहो गौतम : खेचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय की तीन प्रकार की योनि कही. १ अण्डज-
31 अण्ड रू. उत्पन्न होवे सा २ पोतज थेला से उत्पन्न होवे सो और २ समूच्छिम स्त्री पुरुष के संयोगः विना उत्पन्न होवे सो. इस में से अण्डज, पोतज के तीन २ भेद कहे . स्त्री, पुरुष व नपुंसक और संमूछिम में मात्र एक नपुंसक वेद पात है. यह योनिसंग्रहका प्रथम व.ल का कथन हुवा. खेचर में छ लेश्या हैं, दृष्टि की तीन हैं तीन ज्ञान की भजना है, तीन अज्ञान की भनना है, तीन योग, उपयोग दो, चारों गतिवाले
भावार्थ
imahrab