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भावार्थ
28 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भवगती ) सूत्र
निजरेंति, अण्णे से वेदणा समए अण्णे से निजरासमए से तेणट्रेणं जाब न से वेदणा समए । एवं जाव वेमाणियाणं ॥ ९॥ नेरइयाणं भंते ! किंसासया असासया गोयमा ! सिय सासया सिय असासया । सेकेणट्रेणं भंते ! एवं वुच्चइ नेरइया सिय सासया सिय असासया ? गोयमा! अव्वोच्छित्तिणयट्ठयाए सासया वोच्छित्तिनयट्ठयाए असासया से तेणटेणं जाव सिय असासया एवं जाव वेमाणिपा सिय सासया सिष
असासया सेवं भंते भंतेत्ति ॥ इतिसत्तम सयस तइओ उद्देसो सम्मत्तो ॥७॥३॥ होता है. इसी कारन से जिम समय में जीव कर्म वेदते हैं उस समय में निर्जरते नहीं हैं व जिस समय में निर्जरते हैं उत समय में वेदते नहीं हैं. ऐसे ही नारकी आदि सब दंडक का जानना ॥९॥ अहो भगवन ! क्या नारकी शाश्वत हैं या अशाश्वत है ? अहो गौतम ! नारकी क्वचित् शाश्वत व क्वनि अशाश्वत हैं. अहो भगवन् ! किस कारन से नारकी क्वचित् शाश्वत व क्वचित् अशाश्वत है ? अहो गौतम ! नारकी का कदापि विच्छेद नहीं होनेवाला है इस अपेक्षा से शाश्वत है और वहां उत्पन्न हु नारकी आयुष्य क्षय से काल करके अन्य स्थान जाते हैं उस अपेक्षा से अशाश्वत है. इस कारन से नारकी शाश्वत व अशाश्वत दोनों रहे हुवे हैं ऐसे ही वैमानिक तक सब दंडक का जानना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य है. यह सातवा शतक का तीसरा उद्देशा समाप्त हुवा ॥७॥३॥
880सातवा शतकका तासरा उद्देशा 988