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सत्र
१. अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
जे निजरासमए, से वेदणासभए ? णो इणटे समटे । से केणटेणं भंते । एवं वुच्चइ जे वेदणा समए नसेनिजरा समए, जे निजरा समए नसेवेदणा समए ? गोयमा ! जं समयं वेदंति नो तंसमयं निजरंति, जंसमयं निजरंति नो तं समयं वेदंति, अण्णमि समए वेदंति अण्णंनि समए निजरंति, अण्णे से वेदना समए अण्णे से निजरासमए, से तेणट्रेणं जाव न से वेदणा समए ॥ नेरइयाणं भंते ! जे वेदना समए से निजरासमए, जे निजरा समए से वेदणा समए ? णो इणटे समटे । से केणणं भंते । एवं वुच्चइ, नेरइयाणं जे वेदणा समए न से निजरा समए जे निजरासमए न से वेदणा समए ? गोयमा ! नेरइयाणं जं समयं वेदेति नो तं समयं
निजरेंति जसमथं निजरेंति नो तंसमयं वेदेति, अणंमि समए वेदंति अण्णंमिसमए कर्म को निर्जरेगा. ऐसे ही चौवीस दंडक का जानना ॥ ८ ॥ अहो भगवन् ! जो वेदना समय है वही निर्जरा समय है अथवा जो निर्जरा समय है वहीं वेदना समय है ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है. अहो भगवन् ! किस कारन से जो वेदना समय है वह निर्जरा समय नहीं है व जो निर्जरा
है वह वेदना समय नहीं है ? अहो गौतम ! जिस समय में जीव कर्म वेदते हैं उस समय में मिर्जरते नहीं है और जिस समय में निर्जरवे हैं उस समय में वेदते नहीं हैं. वेदना व निर्जरा का समय पृथक् ही है।
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ