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भावार्थ
48 पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र
बुच्च जंवेदं नातं निज्जरंसु, जैनिज्जरिंसु नोतं वेदसु ? गोयमा ! कम्मवेदसु नोकम्मनिरंसु सेते द्वेणं गोयमा ! जाव नोतं वेदंसु ॥ नेरइयाणं भंते! जंवेदसु तनिज्ज रिंसु ? एवं नेरइयावि, एवं जाव वेमाणिया | सेनूणं भंते ! जंवदंति तंनिज्जरंति जंनिज्जरंति तंवेदति ? णो इट्ठे समट्ठे । से केणट्टेणं एवं बुच्चइ जाव नो तंवेदंति ? गोयमा ! कम्मवेदति नो कम्म निज्जरंति, से तेणट्टेणं गोयमा ! जाव नो तवेदंति, एवं नेरइयाद जाव वेमाणिया ॥ ७ ॥ सेनूणं भंते ! जंवेदिस्संति तंनिज्जरिस्संति, जंनिज्ज - रिस्संति, तंवेदिस्संति ? णो इणट्टे समट्ठे । से केणद्वेणं जाव णो तंवेदिस्संति ? गोयमा ! कम्मं वेदिस्संति नो कम्मं निज्जरिस्संति, से तेणट्टेणं जाव नो तवेदिस्संति, एवं नेरइयावि जात्र वेमाणिया ॥ ८ ॥ सेणूणं भंते ! जे वेदणासमए से निज्जरासमए, ( कहना नहीं व निर्जरे को वेदे कहना नहीं. ऐसे ही नारकी आदि चौवीस ही दंडक में जानना. अहो भगवन् ! जिसको वेदता है उसे क्या निर्जरता है अथवा जिसको निर्जरता है उसे क्या वेदता है ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है क्योंकि कर्म को वेदता है और नो कर्म को निर्जरता है. ऐसे ही चौवीस दंडक में जानना || ७ || अहो भगवन् ! जिस को वेदेगा उसे क्या निर्जरेगा अथवा जिस को निर्जरेगा उसे क्या वेदेगा ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है क्योंकि कर्म को वेदेगा व नो
44 सातवा शतक का तीसरा उद्देशा
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