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गोयमा ! जाव न सा वेयणा ॥ नेरइयाणं भंते ! जा वेयणा सा निजरा, जा निजरा सावेयणा ? गोयमा ! णोइणट्टेसमटे । सेकणटेणं एवं वुच्चइ नेरइयाणं जावेयणा नसानिजरा, जानिजरा नसावेयणा ? गोयमा ! नेरइयाणं कम्मवेयणा णोकम्मनिज्जरा, सेतेणटेणं गोयमा ! जाव न सा वेयणा । एवं जाव वेमाणियाणं ॥६॥ से शृणं भंते !
जं वेदंसु तं निजरिंसु जं निजरिंसु तं वेदंसु ?णो इणटे सम?॥से केणटेणं भंते ! एवं भावार्थ अहो गौतम ! यह अर्थ समर्थ ही है. अहो गवन् ! किस कारन से जो वेदना है वह निर्जग नहीं है। 3
व जो निर्जरा है वह वेदना नहीं है ? अहो गौतम ! उदित कर्मों को वेदना कहते हैं. और कर्मों का अभाव को निर्जरा कहते हैं. इस से वेदना सो निर्जरा नहीं और निर्जरा सो वेदना नहीं है. अहो ।' भगवन् ! नारकी को क्या जो वेदना है वह निर्जरा है और जो निर्जरा है वह वेदना है ? अहो गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है. क्योंकि नारकी को उदय आया हुवा कर्म सो वेदना है और कर्म का अभाव सो निर्जरा है. इसलिये ऐसा कहा गया है कि जो वेदना है वह निर्जरा नहीं है व निर्जरा है वह वेदना
नहीं है. ऐसे ही वैमानिक तक जानना ॥ ६ ॥ अहो भगवन् ! जिसे वेदा उसे क्या निर्जरा कहना |ल अथवा जिसे निर्जरा उसे वेदा कहना? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है. अहो भगवन् ! किस
कारन से यह अर्थ योग्य नहीं है ? अहो गौतम ! जीवने कर्म वेदे व नोकर्म निजैरे. इस से वेदे को निर्जरे
4.2 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी82
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी