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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
4008- पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 20
म० योग्य ॥ ६ ॥ पूर्ववत् ॥ पूर्ववत् ॥ ८ ॥ पूर्ववत् ॥ ९ ॥ पूर्ववत् ॥ ७ ॥ ३ ॥
भाणियव्वाओ जोइसियरस न भण्णइ जाब सिय भंते ! पम्हलेस्से वैमाणिए अप्पकम्मतराए चैव मुक्कलेस्से वेमाणिए महाकम्मतराए ? हंता सिया !! से केणद्वेणं ? सेसं जहा नेरइयस्स जाव महाकम्मतराए ||५|| सेणूणं भंते ! जर वेयणा सा निज्जरा जा नजरा सा वेणा ? ोइणट्टे समट्ठे । से केणट्टेणं भंते एवं चुच्चइ जावेयणा नसा निज्जरा, जानिज्जरा न सा वेयणा ? गोयमा ! कम्म वेयणानो कम्मनिजरा, सेतेणटुणं { प्रत्ययिक ऐसा होता है, अर्थात् जैसे कृष्ण नील में सातवी पांचवी नरक का कहा वैसे ही यहां तीसरी व पांचवी पृथ्वी का जानना. जैसे अल्प कर्मवाले व महा कर्मवाले नारकी का कहा वैसे ही असुर कुमार का जानना. परंतु इस में नेजोलेश्या का प्रश्न अधिक जानना. वाणव्यंतर में चारों लेश्या का प्रश्न {जानना. ज्योतिषी में मात्र एकही लेश्या है इस से इस का दंडक नहीं कहना. शेष वैमानिक तक सब दंडक का जानना. जैमानिक की पृच्छा करते हैं. अहो भगवन् ! पद्म लेश्यावाले अल्प कर्मी व शुक्ल {लेश्यावाले महा कर्नी क्या क्वचित् होते हैं ? हां गौतम : स्थिति की अपेक्षा से ऐसा होता है ॥ ५ ॥ (शुभाशुभ लेश्यावन्त जीव साता असाता वेदना भोगव कर निर्जरा करते हैं इसलिये वेदना व निर्जरा का {प्रश्न करते हैं. अहो भगवन् ! जो वेदना है वह क्या निर्जरा है और जो निर्जरा है वह क्या बेदना है।
सातवां शतकका तीसरा उद्देशा
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