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शब्दाय वीजजीव से फु० स्पर्श है. हां ॥ ३ ॥ अ० अथ भ० भगवन् आ. आलू मू० मूली सिं० अदरख हि०१*
हरी हलदी सि० विदारीकंद सि. सिरिकंद कि० किष्टकंद निः निरिकाकंद छी० क्षीरकंद क कृष्णकंदी
हारंति परिणामंति ? गोयमा ! मूला मूलजीवफुडा, पुढवी जीव पडिबद्धा तम्हा | आहारंति, तम्हा परिणामंति, कंदा कंद जीव फुडा मूल जीव पडिवडा तम्हा आहारं
ति, तम्हा परिणामति एवं जाव बीया बयिजीवफुडा फलजीवपडिबढा तम्हा आहारंति तम्हा परिणामंति ॥ ३ ॥ अह भंते ! आलुए, मलए, सिंगबेरे, हिरिली
सिरिली, सिसिरली, किटिया, निरिथा, छीरविरालिया, कण्हकंदे, वजकंद, सूरणभावार्थ
मूल के जीव स्पर्श हुवे हैं परंतु पृथिवी जीव से प्रतिबद्ध है इसलिये मूल के जीव पृथ्वीकाया का आहार करते हैं और उसे परिणमाते हैं. उस आहार में कुछ विभाग कंदके जीव आकर्षते हैं, कुछ है स्कंधके जीव आकर्षते हैं,उस में शाखा के जीव, शाखामें सेप्रतिशाखाके जीव,प्रतिशाखामें सेपत्र,पत्रमेंसे पुष्प पुष्प में से फल व फलमें से बीजं के जीव आकर्षते हैं और शरीर में परिणमाते हैं. इस प्रकार वनस्पति-11 कायिक जीवों का आहार परिणमता है. ॥ ३ ॥ अब अहो भगवन् ! आलु, मूला अदरख, हरी
हलदी, विदारीकंद, सिरिकंद, किष्टकंद, निरिकाकंद, क्षीरविरालिका, कृष्णकंद, वज्रकंद, सूरण 10 कंद खेलुड, अर्दमूर्छा पिण्डहरिद्रा लौहाणी, हथिहूमिभाग, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, सादंडी,
49 अनुबादव-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
प्रकाशक-गमाहादूर लाला सुखदेवस हायजी ज्वालाप्रसादजी