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________________ शब्दार्थ पो० पुद्गल व वनस्पतिकायापने व० जाते हैं वि०विशेष जाते हैं च० चेवते हैं उ० उत्पन्न होते हैं ए ऐसे 12 गो० गौतम गि० ग्रीष्म में व० बहुत व० वनस्पतिकाया ५० पत्र से पु० पुष्प से जा० यावत चि० रहती है ॥२॥ से वह मू० मूल मू०मूलजीव से फु० स्पर्श के० स्कन्द के० स्कन्द जीव से फु० स्पर्श बी० बीज बी०१० काइयत्ताए वक्कमति विउक्कमति चयंति उववजति । एवं खलु गोयमा ! गिम्हासु , बहवे वणस्सइकाइया पत्तिया पुफिया जान चिटुंति ॥ २ ॥ से गुणं भंते ! , मूला मूलजीवफुडा, कंदा कंदजीवफुडा, जाव . बीया बीयजीवफुडा ? हता गोयमा ! मूला मूलजीवफुडा जाव बीया बीयजीवफुडा ॥ जइण भंते ! मूला मूल जीव फुडा जाव बीया बीय जीव फुडा; कम्हाणं भंते ! वणस्सइकाइया आभावार्थ इसलिये अंहो गौतम ! ग्रीष्मऋतु में बहुत वनस्पतिकायिक जीव पत्रबाले पुष्पवाले यावत् सुशोभित रहते ॥ २ ॥ अहो भगवन् ! क्या वनस्पति के मूलको मूल में रहे हुवे जीव स्पर्श हुवे हैं, कंद को कंद में रहे हुवे जीव स्पर्श हुवे हैं, यावत् वीज को बीज में रहे हुवे जीव स्पर्श हुवे हैं ? हां गौतम ! मूल को मूल के जीव स्पर्शे हुवे हैं यावत् वीज को बीज के जीव स्पर्श हुवे हैं. अहो भगवन् : जब मूल को मूल के । जीव स्पर्श कर रहे हुवे हैं यावत् वीज को बीज के जीव स्पर्श कर रहे हुवे हैं तब वनस्पतिकायिक जीव कैसे आहार करते हैं ? व आहार किये हुवे पुद्गलों को कैसे परिणमाते हैं ! अहो गौतम ! मूल को 48 पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 488 208030% साबवा शतक का तीसरा उद्देशा
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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