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________________ शब्दार्थ | सूत्र - पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 49 भावार्थ. {ववज्रकंद सू० सूरणकंद खे• खेलूडकैद अ अर्द्धमूर्च्छा पिंहलदीपिंड लो० लोहानीकंद ह० हुथहूमीभाग वि० विभागकंद अ० अश्वकणाकंद सी० सिंहकरणी सा० साडी मु० मुमुंडी जे० जो अ० अन्य त० तैसे स० सर्व अ० अनंत जीव वि० विविध प्रकार के हैं ० हां गो० गौतम ॥ ४ ॥ भ० भगवन् क० कृष्णलेशी ने० नारकी कंदे खेल्लूडे, अहमुच्छा पिंडहलिदा लोहाणी हूथिहूविभागा अस्सकण्णी, सीहकण्णी, सादंडी, मुसुंडी, जेयात्रणे तहप्पगारा सव्वे ते अनंत जीवा विविहसत्ता ? हंता गोयमा ! आलू मूलए जाव अनंत जीवा विविहंसत्ता ॥ ॥ सिय भंते ! कण्हलेसे नेरइए अप्पकम्मतराए नीललेसे नेरइए महाकम्मतराए ? हंता सिय ॥ सेकेणणं भंते ! एवं वृच्चइ कण्हलेसे नेरइए अप्पकम्मतराए, नीललेसे नेरइए ! ४ ॥ {मुलंडी, और अन्य भी इस प्रकार की कंद वनस्पति में वनस्पति समान वर्णवाले अनंत जीव विविध प्रकार की कर्म की सत्ता से क्या उत्पन्न होते हैं ? हां गौतम आलू मूले आदि केंद वनस्पति में वनस्पतिकाय के वर्णवाले अनंत जीव उत्पन्न होते हैं ॥ जीव लेश्या से उत्पन्न होते हैं इसलिये {लेश्या का स्वरूप कहते हैं. अहो भगवन् ! क्या क्वचित् कृष्ण लेश्यावाले नारकी अल्प कर्मवाले व (नीललेश्यावाले नारकी महा कर्मवाले होते हैं ? हां गौतम ! कृष्ण लेश्यावाले नारकी क्वचित् अल्प ॐ कर्मवाले व नीललेश्यावाले नारकी क्वचित् महा कर्मवाले होते हैं. अहो भगवन् ! किस कारन से कृष्ण १०३८० सातवा शतकका तीसरा उद्देशा e ८९९
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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