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सूत्र
भावार्थ
ॐ अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
णीय कयरे २ हिंतो जाव विसेसाहियावा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा मूलगुण पच्चक्खाणी उत्तरगुणपच्चक्खाणी असंखेज्जगणा, अपच्चखाणी अनंतगुणा ॥ एएसि भंते ! पंचिदिय तिरिक्ख जोणियाणं पुच्छा ? गोयमा सव्वत्थोवा जीवा पंचिदिय तिरिक्ख जोणिया मूलगुण पच्चक्खाणी, उत्तरगुण पञ्चक्खाणी असंखेज्जगुणा, अपच्चक्खाणी असंखेज्जगुणा ॥ एएसिणं भते ! मणुस्साणं मूलगुणपच्चक्खाणीणं पुच्छा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा मणुस्सा मूलगुणपच्चक्खाणी, उत्तरगुणपच्चक्खाणी संखजगुणा, अपच्चक्खाणी असंखेज्जगुणा ॥ जीवाणं भंते ! सव्व्वमूलगुणपच्चक्खाणी देसमूलगुणपच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी ? गोयमा ! जीवा सन्त्रमूलगुणपच्चक्खाणी देस
अहो भगवन् ! क्या नारकी मूलगुन प्रत्याख्यानी, उत्तरगुन प्रत्याख्यानी व अप्रत्याख्यानी हैं ? अहो गौतम ! नारकी मूल व उत्तर गुन प्रत्याख्याती नहीं हैं परंतु अप्रत्याख्यानी हैं. ऐसे ही दश भुवनपति, पांच स्थावर व तीन विकलेन्द्रिय, वाणव्यंतर, ज्योतिषी व वैमानिक का जानना तिर्यच पंचेन्द्रिय व मनुष्य का समुच्चय जीव जैसे कहना. अहो भगवन् ! इन मूलगुन, उत्तरगुन प्रत्याख्यानी व अप्रत्याख्यानी में कौन किस से संख्यात गुने असंख्यातगुने यावत् विशेषधिक हैं ? अहो गौतम ! सत्र से थोडे मूलगुन प्रत्याख्यानी, उस से उत्तरगुन प्रसाख्यानी असंख्यातगुने उस से अप्रत्याख्यानी अनंत गुने. पंचेन्द्रिय
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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