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पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 28
मूलगुणपच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणीवि ॥ नेरइयाणं पुच्छा ? गोयमा ! नेरइया नो सव्व मूलगुण पच्चक्खाणी, नो देसमूलगुणपञ्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी ॥ एवं जाव चउरिदिया ॥ पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ? गोयमा ! पंचिंदिय तिरिक्खजोणिया नो सव्वमूलगुणपच्चक्खाणी देसमूलगुणपच्चक्खाणीवि, अपच्चक्खाणीवि ॥ मणुस्सा जहा जीवा ॥ वाणमंतर जोइसियवेमाणिया जहा नेरइया । एएसिणं भंते जीवाणं सव्व मूलगुण पञ्चक्खाणीणं, देस मूलगुण पञ्चक्खाणीणं अपच्च
488 सातवा शतकका दूसरा उद्देशा
मावार्थ
तिर्यंच में मूलगुन प्रसाख्यानी, उत्तर गुन प्रत्याख्यानी व अप्रत्यख्यानी में से कौन किस से यावत् विशेषाधिक हैं ? अहो गौतम ! सब से थोडे मूलगुन प्रत्याख्यानी तिर्यंच, उस से उत्तरगुनप्रत्याख्यानी तिर्वच असंख्यात गुने, उस से अप्रत्याख्यानी अनंत गुने. मनुष्य में सब से थोडे मूलगुन प्रत्याख्यानी, उत्तरगुनमत्याख्यानी संख्यात गुने और अप्रत्याख्यानी असंख्यात गुने. अहो भगवन् ! क्या जीव सब मूलगुनमत्याख्यानी हैं, देशमूलगुनप्रत्याख्यानी हैं या अप्रत्याख्यानी हैं ? अहो गौतम ! समञ्चय
जीव सब मूल गुन प्रत्याख्यानी, देशमूलगुनप्रत्याख्यानी व अप्रत्याख्यानी हैं. नारकी सब मूलगुन व *देश मूल गुन प्रत्याख्यानी नहीं हैं परंतु अप्रत्याख्यानी हैं. ऐसे ही दश भुवनपति, पांच स्थावर तीन
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