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५चमाङ्ग विवाह पण्णात्ति (भगवती) सत्र 48
परिभोग परिमाणं, अणत्थदंडवैरमणं, सामाइयं, देसावगासियं, पोसहोववासो अतिहिसंविभागो ॥ अपच्छिम मारणंतिय संलेहणाझूसणाराहणता ॥२॥ जीवाणं भंते ! कि मूलगुणपञ्चक्खाणी उत्तरगुणपञ्चक्खाणी अपञ्चक्खाणी ? मोयमा ! जीवा मूलगुणपच्चक्खाणी, उत्तरगुणपञ्चक्खाणी अपञ्चक्खाणीवि ॥ नेरइयाणं भंते ! किं मूलगुणपञ्चक्खाणी पुच्छा ? गोयमा ! नेरइया नो मूलगुणपच्चक्खाणी, नो उत्तरगुणपच्चक्वाणी अपचक्खाणी ॥ एवं जाव चउरिंदिया । पंचिंदिय तिरिक्ख ' जोणिया मणुस्साय जहा जीवा, वाणमंतरजोइसि य वेमाणिया जहा नेरइया ।
एएसिणं भंते ! जीवाणं मूलगुणपच्चक्खाणीणं उत्तरगुणपञ्चक्खाणीणं, अपच्चक्खानिर्विशेष तप सो सर्वथामकार से अशनादिक का त्याग करना ९ संकेत तप सो गठि मुष्ठि आदि और 4 १०अद्धा तप सो पौरुषि आदि कतिप करना. यह सर्वउत्तरगुनप्रत्याख्यान हवा, अब देशउत्तरगुन प्रत्याख्यान के सात भेद बताते हैं. १ दिशिव्रत २ उपभोगपरिमाणवत ३ अनर्थदंडविरमण ४ सामायिक ५ देशावgo
गाशिक : पौषधोपवाम और ७ अतिथिसंविभागवत. अंतसमय में मारणान्तिक संलेहना की सेवा *आराधना करना ॥ २ ॥ अहो भगवन् ! क्या जीव मूलगुनप्रत्याख्यानी हैं, उत्तरगुनप्रत्याख्याना हैं,
या अप्रत्याख्यानी हैं ? अहो गौतम ! जीव मूलगुन प्रत्याख्यानी, उत्तरगुन प्रत्याख्यानी व अप्रत्याख्यानी
. सातवा शतक का दूसरा उद्देशा
भावार्थ
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