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शब्दार्थ * दोपकार का स सर्व उत्तरगुण प्रत्याख्यान दे० देश उत्तरगुण प्रत्याख्यान स० सर्व उत्तरगुण प्रत्याख्यान
द० दश प्रकार का अ० अनागत अ० अतिक्रान्त को कोटि सहित नि० नियंत्रित सा० सागार अ०
ओ वेरमणं; जाव थूलाओ परिग्गहाओ वेरमणं ।। उत्तरगुण पच्चक्खाणेणं भंते! कइविहे. पण्णत्ते? गोयमा ! दुविहे प० तं०. सव्वुत्तरगुणपञ्चक्खाणेय, देसुत्तरगुण पच्चक्खाणेय । सव्वुत्तरगुण. पच्चक्खाणेणं भंते ! कइविहे५०. ? गोयमा ! दसविहे पण्णत्ते, तं० अणागय मइक्वंतं, कोडीसहियं नियंठियंचेव । सागारमणागारं परिमाण कडं निरवसेसं (१) संकेयं चेव अडा. ए पच्चक्खाणं भवे दसहा ॥ देसुत्तरगुण पच्चक्खा
णेणं भंते ! कइविहे. प. ? गोयमा ! सत्तविहे प० तंजहा-दिसिव्वयं, उवभोग
कितने भेद ? अहो गौतम ! सब उत्तरगुनप्रत्याख्यान के दश. भेद कहें. हैं, १ जिस दिन तप, करना होवे भावार्थ
उस दिन आचार्यादिक की वैय्यावृत्य करना होगा इससे पहिले तप करलेवे सो अनागत, २ वैय्यावृत्यादि कारन से पीछे तप करे सो अतिक्रान्त ३. प्रारंभ में व अंत में एक सारखा तप करे अर्थात् जिस क्रम से तप का प्रारंभ करे उसी क्रम में पूर्ण करे ४ नियंत्रित तप
सो अमुक दिन में निश्चय ही त्रप करना ५ सागारिक आगार सहित तप करे ६ अनागारिक तप सोम *किसी प्रकार का आगार रहित तप ७ परिमाण कृत तप सोअमुकदिन तक इस प्रमाण का तप करना सो ८
१० अनुवादक-बालब्रह्मचारी मनि श्री अमोलक ऋ
प्रकाशक-राजावहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी *