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सूत्र
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शब्दाथ प्रत्याख्यान व. बोलते को नो० नहीं मु० मुप्रत्याख्यान दु० दुःप्रत्याख्यान भ. होवे मे० वह दु-दाम-3
त्याख्यानी स. सर्वप्राण में जा. यावत् स० सर्व सत्व में प० प्रत्याख्यान व० बोलता नो० नहीं स०
जाव सव्वसत्तेहि तिविहं तिविहेणं असंजय अविरय पडिहय पच्चक्खाय पावकम्मे सकिरिए असंवुडे एगंतदंडे एगंतबालेयावि भवइ ॥ जस्सणं सव्व पाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं पच्चक्खाय मिति वदमाणस्स एवं अभिसमण्णागय भवइ, इमें जीवा, इमे अजीवा, इमे तसा, इमे थावरा, तस्सणं सव्व पाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं पञ्चक्खाय मिति वदमाणस्स सुपच्चक्खायं भवइ, ना दुपच्चक्खायं भवइ, एवं खलु से सुपच्चक्खाई सब
पाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं वयमाणे सच्चं भासं भासद नो मोसं भासइ, एवं खलु से भावार्थ जीव व सत्व में प्रत्याख्यान है वैसा बोलता हुवा सत्य नहीं बोलता है पतु मृषा बोलता है. इस तरह 4,
मपा बोलने वाला सब प्राणादि में तीन करन तीन योग मे असंयति, अविरति व प्रत्याख्यान रहित
पाप कर्मवाला सक्रिय, असंवरी, एकान्त दंडीव एकान्त वाल होता है. सब प्राण भूत, जीव व सत्व से प्रत्याख्यान है, 5 एसा बोलते हुए जिस को ये जीव हैं, ये अजीव हैं, ये त्रस हैं, ये स्थावर हैं, ऐसा ज्ञान है, उस का सबई ।
प्राणादि में प्रत्याख्यान है ऐसा कहते हुवे सुप्रत्याख्यान है परंतु दुःप्रत्याख्यान नहीं है. और ऐसा सुप्रप त्याख्यानी सब प्राणादि में प्रत्याख्यान है ऐसा बोलता हुवा सत्य भाषा बोलता है परंतु मृषा भाषा नहीं है।
(भगवती) मूत्र विवाह पण्णनि
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**सातवा शतक का दूसरा उद्देशा 8
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