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शब्दार्थ
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी
सत्य भाषा भा० बोले मो० मृषा भाषा भा० बोले से वह मो० मृपावादी स० सर्व प्राण जा. यावत् . स. सर्व संत्व से ति तीन करण ति तीनयोग से अ.असंयति अ० अविरति प.प्रतिहत प०प्रत्याख्यान पा० पापकर्म स० क्रिया सहित अ० असंवृत ए० एकांत दंड ए० एकांत वाल भ० होवे ॥ १ ॥ क. कितने प्रकार का भ• भगवत् प० प्रत्याख्यान प. प्ररूपा गो० गौतम दु. दोप्रकार का मू० मूलगुण
सच्चवाई, सव्व पाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं तिविहं तिविहेणं संजय विरय पडिहय पच्चक्खाय पावकम्मे अकिरिए संवुडे एगंत पंडिए यावि भवइ । सेतेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ जाव सिय दुपच्चक्खायं भवइ ॥ १ ॥ कइविहेणं भंते ! ,
पच्चक्खाणे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पच्चक्खाणे प० तं. मूलगुण पच्चक्खाणेय, बोलता है. ऐसा सत्य बोलनेवाला प्राणादि में तीन करन तीन योग से संयति, विरति, प्रत्याख्यान से पाप कर्म का नाश करनेवाला, अक्रिग्न, संवृत व एकान्त पंडित होता है. इस कारन से अहो गौतम ! ऐसा कहागया है कि सब प्राण, भूत, जीव व सत्व में प्रत्याख्यान हैं ऐसा बालनेवाले को क्वचित् ।। सुप्रत्याख्यान व क्वचित् दुष्पत्याख्यान है ॥ १॥ अहो भगवन् ! प्रत्याख्यान के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! प्रत्याख्यान के दो भेद कहे हैं १ मूलगुण प्रत्याख्यान व उत्तर गुण प्रत्याख्यान. अहो भगवत् ! मूलगुण प्रत्याख्यान के कितने भेद कहे हैं ? १ सब मूलगुण प्रत्याख्यान व २ देश मूलगुन प्र
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ