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शब्दार्थ
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श्री अमोलक ऋषिजी | 8 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि
प्राण से जा. यावत् स० सर्व सत्व से प० प्रत्याख्यान १० बोलते को नो० नहीं अ० ज्ञान भ० है इ०ये जीव अ० अजीव त० त्रस था० स्थावर त० उस को स० सर्व प्राण जा० यावत् स० सर्व सत्व से प.
पच्चक्खायमिति बदमाणस्स, सिय सुपच्चक्खायं भवइ, सियदुपच्चक्खायं भवइ, ॥ सेकेणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ सव्व पाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं जाव सियदुपच्चक्खायं भवइ ? गोयमा ! जस्सणं सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं पच्चक्खायमिति वदमाणस्स नो एवं अभिसमण्णागयं भवइ, इमे जीवा, इमे अजीवा, इमे तसा. इमे थावरा तस्सणं सव्वपाणेहिं जाव सव्व सत्तेहिं पच्चक्खाय मिति वदमाणस्स नो सुपच्चक्खायं दपच्चक्खायं भवइ एवं खल से दपच्चक्खाई, सव्व पाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं पच्चक्खाय मिति वदमाणे णो सच्चं भासं भासइ मोसंभासं भासइ एवं खलुसे मुसाबाई सव्वाणहिं है ऐसा कहनेवाले को क्वचित् सुप्रत्याख्यान होता है व क्वचित् दुःप्रत्याख्यान होता है. अहो भगवन् ! किस कारन से क्वचित् सुप्रत्याख्यान व क्वचित् दुःप्रत्याख्यान होता है ? अहो गौतम ! सब प्राण, भूत, जीव व सत्व में प्रत्याख्यान है ऐसा बोलने वाले में से जिस को ऐसा ज्ञान नहीं है कि ये जीव हैं ये अजीव हैं, ये त्रस हैं, ये स्थावर हैं उस को सब प्राण, भूत, जीव व सत्व में प्रत्याख्यान है ऐसा बोलते हुवे सुप्रत्याख्यान नहीं होता है परंतु दुःमत्याख्यान होता है. इस तरह वह दुष्पत्याख्यानी सब प्राण भूत
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायनी ज्यालाप्रसादजी *
भावार्थ