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शब्दार्थ वि० विलेपन व त्यजा है चु० पृथक्कीया च० नीकाला च० त्यक्त दे० शरीर को जी अचित्त अनहीं.
9 किया अ० नहीं करवाया अ० संकल्प नहीं किया अ० मोललाया नहीं अ० अनुद्देशिक न० नंवकोटि ५० शुद्ध द० दश दोष वि० रहित उ० उद्गमन उ० उत्पाद ए० एषणिक ५० शुद्ध वी० अंगार रहित
८८२ वी० धूम्र रहित सं० संयोजनादोष वि. रहित अ० असुरसुर अ० अचवचव अ० त्वरारहित अ० विलम्ब
कोडीपरिसुद्धं दसदोसविप्पमुक्कं उग्गमउप्पायणेसणासुपरिसुद्धं वीइंगालं वीइधूम संजोयणादोसविप्पमुकं असुरसुरं अचवचवं अदुयमविलंबियं अपरिसाडिं अक्खोवं. जणवणाणुलेवणुभूयं, संजमजायामायावत्तियं संजमभारवहणट्टयाए बिलमिव पण्ण
गभूएणं अप्पाणेणं आहार माहारेइ, एसणं गोयमा ! सत्थातीयस्स, सत्थ परिणामि
मुशलादि शस्त्र रहित, कुसुम की माला व चंदनादि विलेपन के सागी जो साधु साध्वी जिस में से जीवों भावार्थ
चवगये होवे ऐसा, जीव रहित, आचित्त, साधु के लिये नहीं किया हुवा, नहीं कराया हुवा, संकल्प रहित,
न नहीं लाया हवा, मोल नहीं लीया हवा, नहीं बनाया हवा, अनुदिष्ठ, नव कोटि से शुद्ध, दशा दोष रहित, उद्गम, उत्पात व अनेषणिक दोषों से रहित, इंगाल, धूमू व संजोयना दोष रहित, भोजन करते शुरू शब्द नहीं होवे वैसा, चपचपाट नहीं होवे वैसा शीघ्रता व मंदता रहित, भूमि पर कण नहीं डालते हवे, गाडी के अक्ष का अंजन समान लेप रहित, संयम यात्रा मात्रा की वृत्ति संहित, संयम का शर नि-17
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी *