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शब्दार्थ |
भावार्थ
400 पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
शुद्ध जा० यावत् सा० स्वादिम प० लेकर प० पीछे कु० मुर्गी के अं० अंडे प० प्रमाण मात्र क० कवल) आ आहारकरे ॥ १४ ॥ अ० अथ मं० भगवन् स० शस्त्र अ० अतीत हुवा स० शस्त्र प० परिणमा ए० शुद्ध वे० विशेष शुद्ध स० भिक्षाचरी पा० पान भो० भोजन का के० कौनसा अ० अर्थ गो० गौतम जे० जोन० साधु नि० साधी नि० त्यजा हुवा स० शस्त्र मु० मूशल व० त्यजी हैं मा० माला व० चंदन खेत्ताइक्वंतरस, कालाइकांतस्स, मग्गाइकंतस्स, पमाणाइकंतस्स पाणभोयणस्स अट्ठे पण्णत्ते ॥ १४ ॥ अह भंते ! सत्थातीयस्स, सत्थ परिणामियरस एसियस्स वेसियस समुदाणियस्स पाणभोयणस्स के अट्ठे पण्णत्ते ? गोयमा ! जेणं निगंथेवा निग्गंथीवा निक्खित्त सत्थ मुसले क्वगयमाला वण्णगविलेवणे बवगय चुय चइय चत्तदेहं, जीवविप्पजढं, अकय मकारिय मसंकप्पियमणाहूय मकीयकड मणुट्टिं नवऊनांदरी तप होता है, चौवीस कवल का आहार करनेवाले को अमोद तप होता है और बत्तीस कवल का आहार करनेवाले को पूर्ण आहार किया कहाजाता है. और कोई साधु एक भी कवल का आहार कम करे तो वह काम, रसभोगीं नहीं कहाजाता है. अहो गौतम ! यह क्षेत्रातिक्रान्त, कालातिक्रान्त, मार्गातिक्रान्त, व प्रभाणातिक्रान्त पान भोजन का अर्थ कहा ॥ १४ ॥ अहो भगवन् ! शस्त्रातीत १७ शस्त्रपरिणमित एवणीय, वेषणीय, व सामुदानिक पान भोजन का क्या अर्थ होता है ? अहो गौतम !
सातवा शतकका पहिला उद्देशा
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