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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
में प० लेकर प० पीछे की पो० पौरुषी उ० प्राप्त होकर आ० आहार करे ए०
को का कालातिक्रांत
जे० जो नि० साधु जा० यावत् सा० स्वादिम १० लेकर प० पीछे अ० अर्ध योजन मे० मर्यादा वी० व्यतीत हुवे आ० आहार करे ए० उत को म० मार्ग अतिक्रान्त जे० जो नि० साधु फा० फ्र सुक ए० क्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ताणं करलाणं आहार माहारेइ, एसणं गोयमा ! पमाणाइवांते पाणभोय || अटुकुक्कुडि अडंगप्पमाणमेत्ते कवले आहार माहारेमाणे अप्पाहारे । दुबालस कुक्कुडिअडगप्पमाणमेत्ते कवले आहार माहारेमाणे अवडोमोयरिया । सोलस कुक्कुड अंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहार माहारेमागे दुभागपत्ते ॥ उब्वसं कुक्कुडि अडगप्पमाणे जाव आहारमाणे ओमोदरिया । बत्तीसं कुक्कुडि अंडगप्पमाणमेचे कवले आहार माहारेमाणे पमाणपत्ते एक्को एक्केणवि घासेण ऊणगं आहार माहारेमाणे समणे निग्गंथे नोपकामरसभोइत्ति वत्तन्वंसिया ॥ एतणं गोयमा ! { जाकर आहार करे तो उसे मार्गातिकान्त पान भोजन कहते हैं. जो साधु साधी फाक व एषणिक अशनादि ग्रहण करके मूर्गी के अण्डे प्रमाण बतीस कवल से अधिक का आहार करे तो उसे प्रमाणाति{ कान्त पान भोजन कहते हैं. जो आठ कवल का आहार करता है उसे अल्पाहारी कहना, बारह कवलका आहार करनेवाला कुछ कम अर्थ अवमोदरीवाला कहाता है, सोलह कवल का आहार करनेवाले को अर्ध
4 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
*- प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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