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शब्दार्थ अतिक्रान्त पा० पान भो० भोजन का के० कैसा अ० अर्थ गो० गौतम जे. जो नि० साधु फा०
फ्रासुक ए० शुद्ध अ० अशन अ० उदित होते पहिले मू० सूर्य प० लेकर उ० उदित हुवे पीछे आ०१४ आहार करे ख० क्षेत्र अतिक्रान्त जे. जो नि० साधु जा० यावत् सा स्वादिम प. प्रथम पो. पौरुषी ।
तस्स, पमाणाइक्वंतस्स, पाणभोयणस्स के अट्टे पण्णत्ते ? गोयमा ! जेणं निग्गंथेवा १७ फासुएसणिजं असणं पाणं खाइमं साइमं अणुग्गए सूरिए पडिग्गहित्ता उग्गए सरिए आहार . माहारेइ, एसणं गोथमा ! खेत्ताइकते पाण भोयणे ॥ जेणं निग्गंथेवा जाव साइमं । पढमाए पोरिसीए पडिग्गहेत्ता पच्छिमं पोरिसिं उवायणावित्ता आहार माहारेइ एसणं गोयमा ! कालाइक्कंते पाण भोयणे ॥ जेणं निग्गंथे जाब साइमं पडिग्गहित्ता परंअ. इजोयणमेराए वीइकमावइत्ता आहार माहारेइ, एसणं गोयमा ! मग्गाइकते पाण
भोयणे ॥ जेणं निग्गंथे वा फासुएसणिजेणं जाव साइमं पडिग्गहित्ता परं बत्तीसाए कु. भावार्थ हैं ? अहो गौतम ! जो साधु साध्वी सूर्योदय पहिले फ्रामुक एषणिक अशनादिक ग्रहण करके सूर्योदय
पीछे आहार करते हैं, उसे क्षेत्रातिक्रान्त पान भोजन कहते हैं. जो साधु साध्वी प्रथम पौरुषी में
फ्रासुक व एषणिक अशनादि ग्रहण करके छेल्ली पौरुषी में आहार करे तो उसे कालातिक्रान्त पान भो1 जन कहते हैं. जो साधु साध्वी फ्रासुक एपणिक आहारादि ग्रहग करके उत्कृष्ट दो कोश से अधिक
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भवगती ) सूत्र
मातवां शतकका पहिला उद्देशाdoot
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