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________________ + शब्दाथ दो० दोष वि० रहित ॥ १३ ॥ अ. अथ भं० भगवन् खे० क्षेत्र का० काल म• मार्ग ५० प्रमाण अ. स्स संजोयणादोसविप्पमुक्कस्स पाणभोयणस्स के अट्रे पण्णत्ते ? गोयमा ! जेणं निग्गंथे वा जाव पडिग्गहेत्ता असमुच्छिए जाव आहारेइ, एसणं गोयमा ! वीइंगाले पाणभोयणे ॥ जेणं निग्गंथैवा जाव पडिग्गहेत्ता नो महया अप्पत्तियं जाव आहारेइ, एसणं गोयमा! वीयधूमे पाणभोयणे ॥ जेणं निग्गंथेवा जाव पडिग्गहेत्ता जहा लहं तहा आहार माहारेइ, एसणं गोयमा ! संजोयणा दोसविप्पमुक्के पाणभोयणे ॥ एसणं गोयमा ! वीइंगालस्स वीयधूमस्स संजोयणादोसविप्पमुक्करस पाणभोयण स्स अट्ठे पण्णत्ते ॥ १३ ॥ अह भंते ! खेत्ताइक्वंतरस, कालाइकंतरस, मग्गाइक्काभावार्थ | किसको कहना ? अहो गोतम ! जो साधु साध्वी फासक एषणिक आहारादिक ग्रहण करके मूर्छा गृद्धि व लोलुपता रहित भोगवे उनको ईंगालदोष नहीं लगता है, जो साधु साध्वी फामुक व एषणिकं आहार, ग्रहण करके अप्रीति क्रोध व किलामना नहीं करते हुवे भोगवे तो उनको धूम्रदोष नहीं लगता है, जो साधु साध्वी फासुक एषणिक आहारादिक ग्रहण करके जैसा पीले वैसाही आहार करे उनको संजोयना दोष नहीं लगता है. अहो गौतम : इंगाल, धूम व संजोयना दोष रहित आहार का यह- अर्थ प्ररूपा ॥ १३ ॥ अहो भगवन् ! क्षेत्रातिक्रांत, मार्गातिक्रान्त कालातिक्रान्त व प्रमाणातिक्रान्त आहार पानी किस को कहते हैं 4अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी *प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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