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भावार्थ
49 अनुवादक-बासब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी 80
यिक क० करे से वह उ० विपरीत रि० चलता है से वह ते० इसलिये ॥ ११॥ अ० अथ भं०* भगवन् स० इंगाल सहित स० धूम्नसहित सं० संजोयना दो० दोष दु. दुष्ट पा• पानी भो० भोजन का के• क्या अ० अर्थ प० प्ररूपा गो० गौतम जे०जो नि० माधु नि०माध्वी फा० फासुक ए• शुद्ध अ०११ अशन पा-पान १० लेकर सं० मूच्छित गि• गृद्ध ग. स्नेहयुक्त. १० एकाग्रता से आहार करे।
उस्सुत्तं रियमाणस्स संपराइया किरिया कज्जइ, सेण उस्मुत्तमेव रियइ सतेणटेणं ॥ ११॥ अह भंते ! सइंगालस्स. संधूमस्स संजोयणादोसदुद्रुस्स पाण , भोयणस्स के अटे पण्णत्ते ? गोयमा ! जेणं निग्गंथेवा निग्गंथीवा फासुएसणिज्ज असणपाणखाइमसाइमं पडिग्माहेत्ता संमुच्छिए गिद्धे गढिए अझोववण्णए आहार ,
आहारेइ- एसणं गोयमा ! संइंगाले पाणभोयणे । जेणं निग्गंथेवा निग्गंथीवा फासुविरुद्ध चलने से सांपरायिक क्रिया लगती है. और विना उपयोग से चलनेवाला यावत् विना उपयोग से वस्त्रपात्रादि रखने वाला उत्सूत्रानुसार चलता है इसलिये उनको सांपरायिक किया. लगती है परंतु ईयर्याप- थिक क्रिया नहीं लगती है ॥ ११॥ अहो भगवन् ! इंगालदोष, धूम्रदोष व संजोयनादोष वाला आहार किस को कहते हैं ? अहो गौतम ! जो साधु माध्वी फासुक एषणिक अशनादि ग्रहण करके उन में गृद्ध, मूच्छित, व लोलीभूत बनता हुआ आहार करे उस को इंगालदोष लगता है, जो साधु साध्वी फासुक.
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* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी